मंडी। हिमाचल प्रदेश में महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) को तेजी से ठंडे बस्ते में धकेलने का काम चल रहा है।
अकेले मंडी जिला में ही मनरेगा की करीब पौने सात करोड़ रुपये की धनराशि सरकारी तिजोरियों में पड़ी हैं, जबकि मजदूर रोजगार के लिए तरस रहे हैं। जिलाभर में मनरेगा मजदूरों के 5682 मस्टररोल पेंडिंग पड़े हुए हैं, लेकिन इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा। जिले के वरिष्ठ माकपा नेता कुशाल भारद्वाज का इस बारे में कहना है कि सरकारें उन्हीं योजनाओं में दिलचस्पी लेती हैं, जिनमें धन ठेकेदारों के माध्यम से खर्च किया जा सकता हो और भ्रष्टाचार की पुख्ता गुंजाइश हो। मनरेगा आम गरीब मजदूरों को लाभ दिलाने वाली योजना है, इसलिए जनप्रतिनिधि इसे नजरंदाज किए हुए हैं।
मंडी जिला ग्रामीण विकास अभिकरण (डीआरडीए) ने ग्रामीणों की शिकायत पर इस मामले में सभी बीडीओज से रिपोर्ट तलब की है। लीपापोती के लिए तर्क दिया जा रहा है कि जब तक पुराने स्वीकृत पैसे का लेखा-जोखा मनरेगा सॉफ्टवेयर में अपलोड नहीं होगा, तब तक उन पंचायतों व ब्लॉकों को नए विकास कार्यों के लिए पैसा स्वीकृत नहीं हो पा रहा है।
उपलब्ध रिपोर्ट के अनुसार मनरेगा का पैसा खर्च करने के मामले धर्मपुर, द्रंग, करसोग और सिराज ब्लॉक सबसे फिसड्डी हैं। इन्हीं ब्लॉकों में मस्टररोल भी सबसे ज्यादा पेंडिंग हैं। विकास कार्यों पर किस तरह कछुआ चाल से काम हो रहा है, आंकड़े इसे स्पष्ट बयां कर रहे हैं। मंडी सदर व बल्ह ब्लॉक को दरकिनार कर दिया जाए तो अन्य ब्लॉक काम पूरा करने के मामले में दहाई का आंकड़ा भी पार नहीं कर पा रहे हैं। सिराज व गोहर ब्लॉक में काम पूरा होने की मासिक प्रतिशतता महज 4.38 व 4.50 है। सिराज ब्लॉक में सबसे ज्यादा 1513 और धर्मपुर में 1289 मस्टररोल पेंडिंग हैं। इन ब्लॉकों को केंद्र सरकार भी पिछड़ा घोषित कर चुकी है। बावजूद उसके जनप्रतिनिधि मनरेगा के तहत विकास कार्य करवाने व गरीबों को रोजगार उपलब्ध करवाने की तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं।
डीआरडीए मंडी के उपनिदेशक एवं परियोजना अधिकारी डॉ.संजीव धीमान का कहना है कि इस मामले को लेकर सभी बीडीओज से रिपोर्ट तलब की गई है। पैसा खर्च होने में हो रहे विलंब के कारण पूछे गए हैं।