मंडी। दुर्गम पहाड़ी प्रदेश हिमाचल में दर्दनाक सड़क हादसों का सिलसिला थमने का नाम हीं ले
हाल ही में हुई कुछ सड़क दुर्घटनाओं के उदाहरण प्रस्तुत हैं। ताजा घटना में सिरमौर के शिलाई विधानसभा क्षेत्र के शिल्ला टटियाना में एक बस के 400 फुट गहरी खाई में गिरने से 4 लोगों की मौत हो गई और 38 लोग घायल हो गए। कहा जा रहा है कि हादसा तेज रफतार के कारण हुआ। तीन माह पूर्व कुल्लू में मणीकर्ण के सरसई में एक पर्यटक बस पार्वती नदी में जा गिरी, जिसमें 40 लोग मारे गए। मृतकों की लाशें आज भी नदी से मिल रही हैं। सोलन के बद्दी में पिंजौर-नालागढ़ मार्ग पर भुड्ड के पास एक कार व ट्रक में भिड़ंत होने से पति-पत्नी व उनके दो भतीजों की मौत हो गई। चंबा में एक निजी बस के अनियत्रित होकर गहरी खाई में गिरने से 14 लोग मारे गए। बीते वर्ष सितंबर में बिलासपुर में गोबिन्दसागर झील में एक निजी बस के गिरने से 25 लोग मारे गए थे।
वास्तव में प्रदेश में इसी तरह की घटनाओं की भरमार सी हो गई है। चालू वर्ष 2015 के दस महिनों में सड़क दुर्घटनाओं सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं, लेकिन इन दुर्घटनाओं पर ना सरकारी स्तर पर कोई विश्लेषण किया गया है और ना ही समाजसेवी एवं स्वयंसेवी संगठनों की ओर से ही कोई सार्थक प्रतिक्रिया आई है।
हिमाचल प्रदेश एक दुर्गम पहाड़ी राज्य है, जहां दुर्घटनाओं के लिए संवेदनशील 500 से अधिक स्थान (ब्लैक स्पॉट) चिन्हित किए गए हैं। क्या ऐसी सड़कों पर विशालकाय वाहनों को चलाने की तब तक अनुमति होनी चाहिए जब तक ब्लैक स्पाट्स ठीक न कर दिए जाएं? इन सड़कों पर कंडम हो चुकी खड़खड़ाती बसों को चलाना कितना सुरक्षित है? हिमाचल पथ परिवहन निगम में क्या उतने चालक-परिचालक मौजूद हैं ताकि उन्हें नियमानुसार पर्याप्त छुट्टियां और विश्राम मिल सके? क्या निगम की वर्कशॉप में इतनी व्यवस्था एवं स्टॉफ उपलब्ध है कि बसें पूरी तरह ठीक हालत में ही सड़कों पर भेजी जा सकें ?
इस समय प्रदेश में सरकारी से ज्यादा निजी बसों का बेड़ा हैं। देखने में आता है कि सड़कों पर निजी बसों में एक तरह से रफ्तार की प्रतियोगिता सी चल रही होती है। इन बसों की स्थिति और उनके चालकों की कुशलता को नजर रखने के लिए क्या पर्याप्त मैकेनिज्म मौजूद है?
देखने में आता है कि बढ़ती दुर्घटनाओं के बावजूद ब्लैक स्पॉट्स को सुधारने की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। विशालकाय टूरिस्ट बसें एवं अन्य बड़े वाहन ऐसी सड़कों पर धड़ाधड़ दौड़ रहे हैं। हिमाचल पथ परिवहन निगम की बसों में चालक निर्धारित घंटों से कहीं ज्यादा समय तक ड्राइविंग करने को मजबूर हैं। उन्हें बहुत कम आराम मिल पा रहा है। निगम की वर्कशॉप्स में भी स्टाफ की कमी के कारण बसों को बिना पूरी मुरम्मत के ही दौड़ाना पड़ रहा है। इसी तरह के और भी अनेक कारण हैं जो राज्य में बढ़ती सड़क दुर्घटनाओं के लिए जिम्मेदार हैं। क्या सरकार को इस ओर से इसी तरह आंखें मूंदें रहना चाहिए या फिर आम जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करना चाहिए?
-लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।