पिथौरागढ़। तहसील डीडीहाट में थल के निकट रामगंगा नदी तट से लगभग डेढ़ किमी दूर एक प्राचीन मंदिर ऐसा भी है जहां पूजा- अर्चना पूरी
इतिहासकार इस मंदिर को राजा कत्यूरी के शासनकाल का बताते हैं। पौराणिक काल में मंदिर क्षेत्र को माल तीर्थ के नाम से जाना जाता था। कत्यूरी राजा कलात्मक मंदिरों और नौलों के निर्माण के लिए विख्यात रहे हैं। उन्होंने ही चट्टान काट कर उसे अलौकिक मंदिर का रूप देने का प्रयास किया। स्थानीय प्रचलित कहानी के अनुसार इसके लिए एक शिल्पी ने एक ही रात में एक हाथ से इस मंदिर का निर्माण किया। इसी कारण इसका नाम एक-हथिया मंदिर रखा गया। राजा ने क्षेत्र में यह सोच कर कि इससे अच्छा मंदिर और न बने, शिल्पी का हाथ कटवा दिया था। इस घटना को अपशकुन मानते हुए भी जनता ने मालिका तीर्थ में स्नान करना और मंदिर में पूजा अर्चना करनी छोड़ दी।
मंदिर की स्थापत्य कला नागर और लैटिन शैली की है। चट्टान को तराश कर बनाया गया यह पूर्ण मंदिर है। चट्टान को काट कर ही शिवलिंग गढ़ा गया है। मंदिर का साधारण प्रवेश द्वार पश्चिम दिशा की तरफ है। मंडप की ऊंचाई 1.85 मीटर और चौड़ाई 3.15 मीटर है। मंदिर को देखने दूर- दूर से लोग पहुंचते हैं, परंतु पूजा अर्चना का निषेध होने के कारण केवल देख कर ही लौट जाते हैं। पुरातत्व विभाग ने यहां पर बोर्ड तो लगाया है, परंतु इसके संरक्षण के कोई उपाय नहीं हुए हैं।