इलाहाबाद। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार को एक बड़ा फैसला सुनाते हुए आदेश दिया है कि यूपी के सभी
यूपी के जूनियर और सीनियर स्कूलों में पढ़ाई की बुरी हालत के मद्देनजर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह सख्त कदम उठाया है। कोर्ट ने कहा कि जब तक जनप्रतिनिधियों, नौकरशाहों, टॉप लेवल पर बैठे अधिकारियों और जजों के बच्चे सरकारी स्कूलों में अनिवार्य रूप से नहीं पढ़ेंगे, तब तक इन स्कूलों की हालत नहीं सुधरेगी।
छह महीने का दिया वक्तः हाईकोर्ट ने यूपी के मुख्य सचिव को आदेश दिया है कि वह अन्य अधिकारियों से राय-मशविरा करके यह सुनिश्चित करें कि सरकारी, अर्द्धसरकारी विभागों के बाबू, जन प्रतिनिधियों, जुडिशरी के लोग, सरकारी खजाने से सैलरी पाने वाले लोगों के बच्चे अनिवार्य रूप से यूपी बोर्ड द्वारा संचालित स्कूलों में एजुकेशन हासिल करें। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुख्य सचिव से कहा है कि वह इस मामले में की गई कार्रवाई के बारे में छह महीने बाद रिपोर्ट दें।
सरकारी स्कूलों में 2.70 लाख पद खालीः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी के एक लाख 40 हजार जूनियर और सीनियर बेसिक स्कूलों में टीचर्स के दो लाख 70 हजार खाली पदों सहित स्कूलों में पानी जैसी मूलभूत सुविधाएं मुहैया नहीं होने पर तीखी टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि यूपी में तीन तरह की शिक्षा व्यवस्था है। अंग्रेजी कॉन्वेंट स्कूल, मध्यम वर्ग के प्राइवेट स्कूल और उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा परिषद् द्वारा संचालित सरकारी स्कूल।
कोर्ट ने कहा, ”अधिकारियों के बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ने के लिए अनिवार्य नहीं करने से इन स्कूलों की यह दुर्दशा है। इनमें न योग्य अध्यापक हैं और न ही मूलभूत सुविधा। ऐसे में जब तक ऐसे सरकारी स्कूलों में बड़े घरों के बच्चे नहीं पढ़ेंगे, तब तक इनकी दशा में सुधार नहीं होगा। देश की आजादी के 68 साल बीत जाने के बाद भी इन स्कूलों में मूलभूत सुविधाएं नहीं हैं। ऐसे में सरकारी अधिकारियों, जनप्रतिनिधियों और राजकीय मदद ले रहे लोगों के बच्चों को बोर्ड के स्कूलों में पढ़ाना अनिवार्य किया जाए।”