श्रीनगर। जम्मू-कश्मीर में शिक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल उठने शुरू हो गए हैं। शिक्षकों की अयोग्यता पर हाईकोर्ट
राज्य हाईकोर्ट में गत दिवस एक बेहद दिलचस्प मामला सामने आया। रहबर-ए-तालीम (आइटी) शिक्षक की नियुक्ति और उसके दस्तावेजों को चुनौती देती एक याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने शिक्षक की योग्यता परखने के लिए उसे अदालत में तलब किया और अंग्रेजी के एक वाक्य का उर्दू में और उर्दू के एक वाक्य को अंग्रेजी मे अनुवाद के लिए कहा, लेकिन वह ऐसा नहीं कर पाया। उसके बाद उसे गाय पर निबंध लिखने को कहा गया, लेकिन वह नहीं लिख पाया। इसके बाद कोर्ट ने शिक्षक को चौथी कक्षा के गणित के कुछ सवाल हल करने को दिए, लेकिन वह उसमें भी असमर्थ रहा। इस पर कड़ा संज्ञान लेते हुए कोर्ट ने राज्य सरकार को एक समिति का गठन करने के निर्देश देते हुए कहा कि ऐसे सभी शिक्षकों का स्क्रीनिंग टेस्ट करें, जो राज्य व देश के विभिन्न हिस्सों में गतिशील शिक्षण संस्थाओं व तथाकथित विश्वविद्यालयों से डिग्री हासिल कर रहबर-ए-तालीम (आईटी) के तहत राज्य के विभिन्न स्कूलों में अध्यापक नियुक्त हुए हैं। कोर्ट ने कहा कि परीक्षा में विफल ऐसे सभी अध्यापकों को तत्काल प्रभाव से सेवामुक्त कर उन्हें डिग्रियां बांटने वाले संस्थानों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाए। इस अध्यापक ने अपनी शैक्षिक योग्यता साबित करने के लिए अदालत में बोर्ड ऑफ हायर सेकेंडरी एजुकेशन नई दिल्ली और ग्लोबल ओपन यूनिवर्सिटी नागालैंड द्वारा जारी डिप्लोमा और डिग्री पेश की थी।
पांचवीं की पुस्तकों में गलतियों की भरमारः यही नहीं जम्मू-कश्मीर में कुछ ऐसे ही ‘नामचीन’ अध्यापकों ने पांचवीं कक्षा के लिए इस तरह किताबें लिख मारी हैं कि वे अब पूरी शिक्षा व्यवस्था का मखौल उड़ा रही हैं। राज्य स्कूल शिक्षा बोर्ड द्वारा पांचवी कक्षा के लिए प्रकाशित गणित और उर्दू की पुस्तकों में गलतियों की भरमार है। इन किताबों के लेखक अथवा रचनाकार कोई कम पढ़े-लिखे नहीं, बल्कि प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों से डॉक्टरेट की उपाधि हासिल करने वाले अकादमिक विशेषज्ञ हैं। सिर्फ गलतियां ही नहीं इन किताबों में कई विषयों में आधी अधूरी जानकारी भी परोसी गई है।
पांचवीं कक्षा के लिए प्रस्तावित गणित की पुस्तक मैरीमैथ में पेज नंबर 49 पर हलवा काटने का एक विषय शामिल किया गया है। हलवा कैसे काटा जाता है, यह तो पता नहीं, लेकिन मजबून कुछ इस प्रकार है- जावेद ने अपने बच्चों नफीसा व उल्फत के लिए हलवे का एक टुकड़ा लाया। हलवे को विभिन्न छोटे टुकड़ों में काटने के बाद उमर के हिस्से में कितने टुकड़े आए। इस सवाल पर छात्रों का ही नहीं अध्यापकों का भी सिर चकरा जाता है, क्योंकि जावेद के दो ही बच्चे हैं उल्फत और नफीसा। ऐसे में उमर कहां से आया, यह पता नहीं चलता।
पेज के दाहिने तरफ हलवे की तस्वीर भी दी गई है और उसके साथ कुछ पंक्तियां लिखी गई हैं। एक पंक्ति में सवाल किया गया है कि यह हलवे का कौन सा हिस्सा है। इसी पुस्तक के पेज 48 पर छात्रों से त्रिकोण पर ध्यान देने और उनकी संख्या बताने को कहा गया है, जबकि इसी पृष्ठ पर अन्य आकारों के बीच चार वृत्त आकृतियां भी हैं। इन आकृतियों में किसी जगह गुलाबी तो किसी जगह पीला रंग किया गया है और छात्रों से पूछा गया है कि कौन सा हिस्सा नीला है।
इसी कक्षा के लिए प्रस्तावित उर्दू की किताब में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जन्म तिथि 12 अक्टूबर 1869 बताई गई है, जबकि पूरे देश में बच्चा जानता है कि महात्मा गांधी का जन्म दो अक्टूबर को हुआ था।
मीडिया ने बोर्ड ऑफ स्कूल एजूकेशन की सचिव प्रो. वीना पंडिता से इस बारे में बात की तो उन्होंने कहा, ‘’ये किताबें बोर्ड के अकादमिक विभाग ने तैयार की हैं। मुझे पहले भी इस संबंध में शिकायतें मिली हैं। मैंने संबंधित अधिकारियों से कहा कि वह इस भूल को सुधारें और दोबारा किताबों की छपाई हो। दोषी अधिकारियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी। हम इस मामले की जांच के लिए एक विशेषज्ञ समिति का गठन कर रहे हैं, जो इन त्रुटियों के लिए जिम्मेदार विषय विशेषज्ञों व संबंधित अधिकारियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की प्रक्रिया शुरू करेगी।’’