कुल्लू। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा है कि देव संस्कृति ही वास्तव
देव सदन में इस संगोष्ठी का आयोजन सत्संग सभा कुल्लू ने किया था, जिसमें जिला भर से लगभग 200 देव प्रतिनिधियों ने भाग लिया। कुल्लू पहुंचने पर सरसंघचालक का पहाड़ी परम्परा के अनुसार भव्य स्वागत किया गया। संगोष्ठी में वक्ताओं ने देवालयों में बलि प्रथा पर अदालती रोक का कड़ा विरोध किया और कहा कि इस फैसले पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए। इस पर मोहन भागवत ने भी कहा कि बलि प्रथा पर आदेश थोपना गलत है। इस बारे में प्राचीन संस्कृति के विद्वानों के साथ चर्चा होनी चाहिए थी।
सामाजिक समरसता पर बल देते हुए उन्होंने कहा है कि समाज यदि एकमत होकर चलेगा तो इससे सामाजिक एकता को बल मिलेगा। सबको मन्दिर में प्रवेश, पानी का सामूहिक स्रोत तथा अंतिम संस्कार के लिए समान श्मशान स्थल की व्यवस्था हो। इसके लिए सबको मिलकर प्रयास करना चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि ऐसा नहीं हुआ तो समाज को तोड़ने वाली ताकतें अधिक प्रभावी होंगी। इसके लिए जाति बिरादरी के प्रमुखों तथा संत समाज को अधिक प्रयत्न करने होंगे। समाज में सद्भाव बढ़ाने के लिए सभी सामाजिक एवं धार्मिक संगठनों को आपस में मिलकर प्रयास करने होंगे।
डा. मोहन भागवत ने कहा कि हमारी संस्कृति मानवता की भलाई के लिए काम करती है, इसमें कट्टरता के लिए कोई स्थान नहीं है। मतान्तरण के कारण देश में ऐसे राष्ट्र विरोधी तत्व खड़े हो गए, जो देश को हानि पहुंचा रहे हैं। उन्होंने आह्वान किया कि सभी मत-पंथ सम्प्रदाय एकजुट होकर चलें तभी भारत सुरक्षित रहेगा।
परिवार व्यवस्था में क्षरण और पारिवारिक मूल्यों में आ रही गिरावट पर चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि परिवार व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के लिए प्रत्येक परिवार ने सप्ताह में एक बार सामूहिक भोजन व सामूहिक भजन और खुलकर चर्चा करनी चाहिए।
इस अवसर पर देव प्रतिनिधियों ने परिचर्चा में भाग लिया और देव संस्कृति के संरक्षण के लिए अनेक उपयोगी सुझाव भी दिए। सत्संग सभा के अध्यक्ष राकेश कोहली ने सबका धन्यवाद किया। संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख डॉ. मनमोहन वैद्य, उत्तर क्षेत्र कार्यवाह सीताराम व्यास, प्रान्त संघचालक कर्नल (सेनि.) रूपचंद, सह प्रान्त संघचालक डॉ. वीरसिंह रांगड़ा, जिला संघचालक राजीव करीर भी इस अवसर पर उपस्थित थे।