हिमाचल कला, साहित्य और संस्कृति अकादमी की अठारह हजार पुस्तकें और एक हजार दुर्लभ पांडुलिपियां अपने लिए एक स्थाई घर ढूंढने की जद्दोजहद पिछले कई वर्षों से कर रही है। हालांकि उसे विधानसभा के पास नव निर्मित डॉ.भीमराव अंबेडकर पुस्तकालय भवन में जगह तो मिली है, परंतु वहां से भी विस्थापन का खतरा मंडरा रहा है।
हिमाचल प्रदेश शिक्षा विभाग, जिसने पिछले दिनों पुस्तक खरीद घोटाले में पूरे देश में नाम अर्जित किया, प्रदेश सरकार की साख सातवें आसमान पर पहुंचाई, उसे अकादमी की इन दुर्लभ पुस्तकों का यहां रहना बिलकुल भी नहीं भा रहा। वैसे भी प्रदेश सरकार का साहित्य और पुस्तक प्रेम आप शिमला बुक कैफे को बेचने के संदर्भ में देख ही चुके हैं कि एक पुस्तकों और लेखकों की गोष्ठियों का बसा बसाया घर रातों रात कैसे उजाड़ दिया गया।
…और यदि अकादमी की इस लाइब्रेरी पर पुनः यह संकट आता है तो मुझे नहीं लगता 556 लाइव एपिसोड कर चुकी एकेडमी उसे अपने रुचिप्रिय अकादमी सदस्यों, सरकारी और गैर सरकारी ‘विशेष दर्जा प्राप्त’ बुद्धिजीवियों और स्थाई अध्यक्षों की मार्फत इसे बचा पाएगी….?
सचिव अकादमी डॉ. कर्म सिंह जी जरूरत से ज्यादा भले आदमी है। कोरोना काल में जब सबकुछ बंद हो गया तो उन्होंने लेखकों के लिए लाइव कार्यक्रम शुरू कर दिए। जिम्मेदारी दी जिमेन्द्र को। शायद देश की यह पहली अकादमी होगी जो दिन में कई बार दो दो लाइव भी कर लेती है। यह अलग बात है कि इस तरह के ‘बुलेट ट्रेन’ की माफिक चल रहे कला, भाषा, संस्कृति और धर्म के कार्यक्रमों की सांस्कृतिक और साहित्यिक दृष्टि से गुणवत्ता कितनी है…? फिर भी उनके प्रयास सराहनीय है। इतना ही नहीं उन्होंने अकादमी संपादित और अन्य लेखकों की भी दर्जनों किताबें प्रकाशित की हैं। साथ ही कई योजनाओं पर नए पुराने लोग लगा दिए हैं। किताबों की प्रिंटिंग इतनी अच्छी है कि दिल्ली के महारथी प्रिंटर प्रकाशक भी दांतों तले उंगली दबा लें।
डा. कर्म सिंह जी के क्रेडिट में जो दूसरी मुख्य बात जाती हैं वह है अकादमी लाइब्रेरी की पुस्तकों का डिजिटलाइजेशन। कल मैं इस भवन में जब गया तो पहली मंजिल में शिक्षा विभाग का बहुत सुंदर राज्य पुस्तकालय देखा। युवाओं से भरा था….उनके लिए एक बड़ी सुविधा। अब वे इस ‘इश्क प्रेम’ की उम्र में कितनी गंभीरता से इस लाइब्रेरी का उपयोग करते हैं, यह दीगर बात है। बुक कैफे शिमला में भी युवा जोड़े पढ़ने के बहाने सुबह आ कर बैठ जाते थे और फिर कैफे बंद होने पर ही जाते। सामने किताब या कॉपी तो होती पर उस पर मुश्किल से उनकी ‘बाली’ नजर रहती। अब ऐसी सरकारी जगह इस उम्र में मिलेगी भी कहां…? इसलिए बुक कैफे में संचालकों को एक बोर्ड चिपकाना पड़ा था कि- एक घंटे से ज्यादा बैठना माना है।
..और तीसरी मंजिल में अकादमी का यह ‘अस्थाई पुस्तकालय’ है। किताबों का डिजिटलाइजेशन चंडीगढ़ की एक कंपनी ‘पंजाब डिजिटल लाइब्रेरी कर रही है।‘ उन्होंने तकरीबन दस हजार से ज्यादा किताबें डिजिटल कर दी हैं और इस तरह कंप्यूटर में किताबों को फिलहाल स्थाई घर मिल रहा है। चार कर्मियों की इस टीम में नरेश कुमार, हिमांशु शर्मा, पपेंद्र ठाकुर और नीमा हैं, जो इस काम में देर रात तक व्यस्त रहते हैं। प्राइवेट कंपनी है न, सरकारी नहीं….?
इस लाइब्रेरी को यहां एकेडमी के कुशल, विनम्र और अनुभवी लाइब्रेरियन देव राज अपनी सेवानिवृति के बाद शिफ्ट करवा गए थे वर्ष 2019 में। होना तो यह चाहिए था कि सरकार उनके अनुभव का लाभ लेते हुए पुस्तकों को बोरियों से अलमारियां में क्रमानुसार रखने तक उन्हें सेवा में रहने देती। पर उनके काम न तो सरकार आई और न ही उन ‘विशेष दर्जा प्राप्त’ बुद्धिजीवियों की कोई सिफारिश।
सचिव डॉ. कर्मसिंह जी इस डिजिटलाइजेशन के लिए बधाई के पात्र हैं। बहुत जल्दी पूरी लाइब्रेरी डिजिटल हो जायेगी। पर प्रश्न वहीं खड़ा रह जाता है कि इतनी किताबें, जिनमें हर वर्ष कई सौ किताबें और शामिल हो जाती हैं, को स्थाई घर कब मिलेगा? शिक्षा विभाग की बुरी नजर पता नहीं कब इनका बोरिया बिस्तर बंधवा ले।
प्रदेश सरकार, विशेष कर शिक्षा विभाग को यह गंभीरता से सोचना चाहिए कि अकादमी से हिमाचल का लेखक ही नहीं शोध छात्र भी जुड़ा है। उनको जितनी उपयोगी सामग्री यहां मिलती है, अन्य कहीं नहीं। इसलिए अकादमी को इस भवन में दो मंजिल मिलनी जरूरी है।
अकादमी को अब अपना खुद का भवन भी अवश्य बना लेना चाहिए, जिसकी कई बरस पहले शायद शिलान्यास की प्लेट तो लग चुकी है, पर काम शुरू नहीं हो पाया।
– विख्यात लेखक एसआर हरनोट हिमाचल अकादमी की पुस्तकों- पांडुलिपियों की दुर्दशा बयां करते हुए।