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फूलों की घाटीः ‘संजीवनी बूटी’ से लेकर जहरीले फूल भी

देहरादून। उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में स्थित विश्वविख्यात फूलों की घाटी में अनेक औषधीय गुणों वाले फूलों के साथ- साथ अब कुछ अत्यंत जहरीले फूलों की भी पहचान हुई है। पर्यटकों को ऐसे फूलों- वनस्पतियों से दूर रहने के लिए कहा गया है। यह घाटी गर्मियों में छह माह तक पर्यटकों के लिए खोल दी जाती है।

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मान्यता है कि रामायण काल में हनुमान इसी फूलों की घाटी से संजीवनी बूटी चुन कर ले गए थे। इस घाटी में आज भी फूलों की 350 से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें बड़ी संख्या में ऐसी प्रजातियां हैं, जिनका अनेक बीमारियों के उपचार में इस्तेमाल होता है। विशेषज्ञों ने इनमें कुछ ऐसे फूलों का भी पता लगाया है जो अत्यंत जहरीले हैं और उनका संपर्क घातक सिद्ध हो सकता है।  

चमोली जिले में स्थित इस फूलों की घाटी, जिसे राष्ट्रीय उद्यान भी कहा जाता है, को विश्व संगठन यूनेस्को ने 1982 में विश्व धरोहर घोषित किया था। यह घाटी ग्रीष्मकाल में छह माह तक पर्यटकों के लिए खोली जाती है। घाटी में 350 से अधिक प्रजातियों के फूल पर्यटकों का विशेष आकर्षण हैं। पर्यटन के लिए अगस्त और सितंबर माह सबसे उपयुक्त माने जाते हैं। इस दौरान घाटी में सबसे ज्यादा फूल खिले रहते हैं, जिसमें ब्रह्मकमल भी शामिल है।

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नंदा देवी बायोस्फियर रिजर्व, गोपेश्वर, चमोली के निदेशक अमित कंवर कहते हैं, “फूलों की घाटी जैव विविधता से भरी है। यहां कई प्रजाति के फूल और वनस्पतियां पाई जाती हैं, जिनमें कई दुर्लभ प्रजातियों के फूल भी शामिल हैं। इन दिनों घाटी में 200 से अधिक प्रजातियों के फूल खिले देखे जा सकते हैं। वन विभाग ने घाटी में एकोनिटम बालफोरी और सेनेसियो ग्रैसिलिफ्लोरस नाम के फूल चिह्नित किए हैं, जो काफी जहरीले होते हैं। सेनेसियो एक दुर्लभ प्रजाति का फूल भी है, जो लंबे समय बाद घाटी में खिला है। किसी ने यदि यह फूल तोड़ लिया या इसको मुंह में रख लिया तो यह जानलेवा भी हो सकता है। पर्यटकों को घाटी में प्रवेश करने पर सावधानी बरतनी चाहिए। किसी भी वनस्पति को छूने या तोड़ने से बचना चाहिए।” 

औषधीय फूल- पत्तियां- जानकारों के अनुसार यहां के फूलों में अद्भुत औषधीय गुण होते हैं, जिनका दवाइयों में इस्तेमाल होता है। हृदय रोग, अस्थमा, शुगर, मानसिक उन्माद, किडनी, लीवर और कैंसर जैसी भयानक रोगों को ठीक करने की क्षमता वाली औषधियां इन फूलों से बनाई जाती है | इसके अलवा यहां बहुमूल्य जड़ी-बूटियां और वनस्पतियां पाई जाती हैं।

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फूलों की घाटी में आजकल कई दुर्लभ प्रजाति के फूल भी खिले हुए हैं। इनमें सबसे मनमोहक फूल मोरिना लोंगिफोलिया है। यह दूर-दूर तक अपनी महक छोड़ता है। इसके अलावा घाटी में विलुप्तप्राय श्रेणी में रखे गए कोरीडालिस कॉर्नुटा फूल भी खिले हुए हैं। ब्रह्मकमल तो फूलों की घाटी से लेकर हेमकुंड साहिब तक जगह- जगह खिले हुए हैं। पिछले दो वर्षों से कोरोना संक्रमण के चलते हेमकुंड साहिब की तीर्थयात्रा बंद है। मानवीय आवाजाही कम होने से यहां ब्रह्मकमल बड़ी संख्या में खिले हुए हैं। यात्रा के दौरान ब्रह्मकमल का बड़ी मात्रा में दोहन हो जाता था, लेकिन इस बार यात्रा का संचालन न होने से घांघरिया से कुछ दूरी से ही ब्रह्मकमल दिखाई दे रहे हैं।

यह राष्ट्रीय उद्यान 87.50  वर्ग किमी क्षेत्र में फैला हुआ है। यहां पाये जाने वाले फूलों में एनीमोन, जर्मेनियम, मार्श, गेंदा, प्रिभुला, पोटेन्टिला, जिउम, तारक, लिलियम, हिमालयी नीला पोस्त, बछनाग, डेलफिनियम, रानुनकुलस, कोरिडालिस, इन्डुला, सौसुरिया, कम्पानुला, पेडिक्युलरिस, मोरिना, इम्पेटिनस, बिस्टोरटा, लिगुलारिया, अनाफलिस, सैक्सिफागा, लोबिलिया, थर्मोपसिस, ट्रौलियस, एक्युलेगिया, कोडोनोपसिस, डैक्टाइलोरहिज्म, साइप्रिपेडियम, स्ट्राबेरी एवं रोडोडियोड्रान आदि प्रमुख हैं। फूलों की घाटी (Valley of flowers) बागवानी विशेषज्ञों अथवा फूल प्रेमियों के लिए हमेशा से एक विश्व प्रसिद्ध स्थल है।  

फूलों की घाटी की खोजः इस घाटी का पता सबसे पहले ब्रिटिश पर्वतारोही फ्रैंक एस स्मिथ (Frank S Smith) और उनके साथी आर एल होल्डसवर्थ (R.L.Holdsworth) ने लगाया था, जो संयोग से 1931 में अपने कामेट पर्वत के अभियान से लौट रहे थे। इसकी बेइंतहा खूबसूरती से प्रभावित होकर स्मिथ 1937 में इस घाटी में वापस आये और 1938 में ‘वैली ऑफ फ्लॉवर्स’ नाम से एक किताब प्रकाशित करवायी।

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एच. आनंद शर्मा

H. Anand Sharma is active in journalism since 1988. During this period he worked in AIR Shimla, daily Punjab Kesari, Dainik Divya Himachal, daily Amar Ujala and a fortnightly magazine Janpaksh mail in various positions in field and desk. Since September 2011, he is operating himnewspost.com a news portal from Shimla (HP).

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