देहरादून। उत्तराखंड में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों की सरकारों की सबसे बड़ी कमजोरी शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के क्षेत्र में कोई ध्यान नहीं दिया जाना है। आज उत्तराखंड की आम जनमानस के नजरिये से जब भी बात होती है तो हजारों उजड़े हुए गांव, रोजगार के लिए पलायन करते लोग, शिक्षा व स्वास्थ्य संस्थानों की बदहाली और बढ़ते संस्थागत भ्रष्टाचार की तस्वीर ही उभरकर सामने आती है। उत्तराखंड में पैर जमाने को आतुर आम आदमी पार्टी (आप) की उम्मीदें बस इसी तस्वीर पर टिकी हैं।
आज हम उत्तराखंड में चरमराती स्वास्थ्य व्यवस्था पर चर्चा करेंगे। राज्य में स्वास्थ्य संस्थानों की बहुत ही खस्ताहालत है। अस्पताल, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, डिस्पेंसरियां आदि के भवन तो हर जगह खड़े हैं, लेकिन चिकिस्तकों, पैरामेडिकल स्टाफ, दवाओं आदि की भारी कमी है। आप यहां की स्वास्थ्य व्यवस्था का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि राज्य में विशेषज्ञ डॉक्टरों के कुल स्वीकृत 1147 पदों में से 493 पदों पर ही नियुक्तियां की गई हैं, शेष 654 पद रिक्त पड़े हैं।
उत्तराखंड में 10 तरह के विशेषज्ञ डॉक्टरों के 50 प्रतिशत से अधिक पद खाली पड़े हैं। फोरेंसिक, स्किन और साइकेट्रिस्ट डॉक्टर सबसे कम उपलब्ध हैं। पूरे राज्य में फोरेंसिक विशेषज्ञ के 25 पद स्वीकृत हैं, लेकिन मात्र एक पद पर फॉरेंसिक विशेषज्ञ तैनात है। इसी तरह राज्य में स्किन के 32 डॉक्टरों के स्वीकृत पदों में से मात्र चार और साइकेट्रिस्ट के 28 पदों में से भी मात्र चार पद ही भरे हुए हैं। पूरे राज्य में कुल मिलाकर विशेषज्ञ डॉक्टरों के 1147 स्वीकृत पदों में से 493 पदों पर ही नियुक्तियां की गई हैं।
सोशल डेवलपमेंट फॉर कम्युनिटी फाउंडेशन को स्वास्थ्य विभाग से आरटीआई में मिली सूचना के अनुसार 30 अप्रैल 2021 तक राज्य में विशेषज्ञ डॉक्टरों के 654 पद खाली हैं। चंपावत जिले में नेत्र सर्जन के तीन स्वीकृत पदों में से एक पर भी नियुक्ति नहीं की गई है, जबकि राजधानी देहरादून में छह स्वीकृत पदों के मुकाबले 11 नेत्र सर्जन कार्यरत हैं। यानी सत्ता तक पहुंच वाले चिकित्सक सुविधाजनक स्थानों को छोड़कर दुर्गम क्षेत्रों में नहीं जा रहे हैं।
एसडीसी फाउंडेशन के संस्थापक अनूप नौटियाल का कहना है कि राज्य में स्वास्थ्य कर्मचारियों के वितरण से संबंधित इंडियन पब्लिक हेल्थ स्टैंडर्ड (आईपीएचएस) ढांचे पर फिर से विचार करने की जरूरत है। अध्ययन से स्पष्ट है कि मैदानी जिलों की तुलना में पर्वतीय जिलों में विशेषज्ञ डॉक्टरों की उपलब्धता बहुत कम है। सरकार को विशेषज्ञ डॉक्टरों को सभी जिलों में समान रूप से तैनात करने की रणनीति पर काम करने की जरूरत है।
राज्य के पर्वतीय जिले बाल रोग विशेषज्ञों की भारी कमी से भी जूझ रहे हैं। पौड़ी में बालरोग विशेषज्ञों के कुल स्वीकृत 22 पदों में से मात्र 5 ही भरे हुए हैं, शेष खाली हैं। इसी तरह अल्मोड़ा में बाल रोग विशेषज्ञों के 18 में से 4, पिथौरागढ़ में 8 में से 2, चमोली में 8 में से एक और टिहरी में 14 में से सिर्फ एक बाल विशेषज्ञ उपलब्ध हैं। स्त्री रोग विशेषज्ञों के बागेश्वर में 5 में से एक, पौड़ी में 22 में से 4, टिहरी में 15 में से 2 और चमोली में 9 में से मात्र एक स्त्री रोग विशेषज्ञ उपलब्ध है।
चमोली और चंपावत जिले में एक भी सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ नहीं है, जबकि पौड़ी में स्वीकृत 14 पदों के मुकाबले केवल एक सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ तैनात है।
आम आदमी पार्टी (आप) के संयोजक ने हाल ही में देहरादून में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा था, “दिल्ली में बड़ी संख्या में उत्तराखंड के लोग रहते हैं और मुझे यहां की शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था की बदहाली की कहानियां सुनाते रहते हैं। जनता की मांग पर आप उत्तराखंड में विधानसभा का चुनाव लड़ेगी और सत्ता में आने पर दिल्ली की तरह यहां भी शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था में सुधार लाया जाएगा।”