देहरादून। उत्तराखंड में सरकारी तंत्र की असंवेदनशीलता और भ्रष्टाचार के चौंका देने वाले तथ्य सामने आए हैं।
सूचना आयोग से जो बिल आरटीआई एक्टिविस्ट को दिए गए, वे चौंकाने वाले हैं। इस मामले में मुख्यमंत्री ने जाँच के आदेश दिए हैं। हालांकि स्वयं सूचना आयोग ने सरकार को इसकी सीबीआई से जांच कराने की संस्तुति की है।
मुसीबत का मंज़र याद करें और इन बिलों का ब्यौरा देखें तो सरकारी मशीनरी की उदासीनता चौंकाने वाली है। इन बिलों में मटन, चिकन, अंडा करी और शाही पनीर के व्यजंनों के भारी-भरकम बिल हैं। सरकारी अफ़सरों और राहत के लिए भेजे गए लोगों की आवाजाही पर भी भारी खर्च दिखाया गया है। होटल में एक दिन ठहरने के लिए 7000 रुपये बतौर किराया चुकाया गया है।
आरटीआई एक्टिविस्ट भूपेंद्र कुमार ने बताया कि उन्होंने आपदा के दौरान खर्चे के बिलों की कॉपी मांगी थी। जानकारी में पता चला कि रोज़ाना के खाने-पीने में मटन, चिकन, अंडा और पनीर का इस्तेमाल किया गया, जबकि वहां हज़ारों लोग भूख से मर रहे थे। उनके पास सारे बिल हैं और तमाम सबूत हैं।
उन्होंने आगे बताया, ”आधा लीटर दूध की क़ीमत 194 रुपये बताई गई है। कारों के बिल लगाए गए हैं जिनमें डीज़ल भरा गया था, लेकिन वे नंबर हमारी जांच के बाद स्कूटर, मोटरसाईकिल और थ्रीव्हीलर के निकले हैं।”
आरटीआई एक्टिविस्ट के मुताबिक होटलो में रहने खाने पर ही 25 लाख रुपये से ज़्यादा उड़ा दिए गए। एक ही दुकान से तीन दिन में 1800 रेनकोट खरीदे गए। एक हेलीकॉप्टर कंपनी को चार दिन के लिए असाधारण भुगतान किया गया।
सूचना आयुक्त अनिल शर्मा ने बताया, ”सूचना के अधिकार के तहत आपदाग्रस्त जिलों से सूचना मांगी गई थी कि आपदा राहत पर कितना पैसा खर्च हुआ। मामले की गंभीरता को देखते हुए मैंने मुख्यमंत्री को सभी सबूत भेज दिए हैं और शिकायतकर्ता के आग्रह पर सीबीआई जांच की सिफ़ारिश की है।”
मुख्यमंत्री हरीश रावत ने फिलहाल मुख्य सचिव एन रविशंकर को जांच का जिम्मा सौंपा है। एन रविशंकर कहते हैं,”मुख्यमंत्री से निर्देश मिला है और नियमानुसार जांच की जाएगी, कहीं पर भी प्रशासनिक स्तर पर या किसी अफ़सर से कोई चूक हुई है तो नियम के तहत कार्रवाई की जाएगी।”