हिमाचल में राजनीतिक दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण जिला कांगड़ा एक बार फिर भाजपाई गुटबंदी का अखाड़ा बन गया है। कुछ अपवादों को छोड़ कर यहां वही सब घटता जा रहा है जो धूमल सरकार के पिछले कार्यकाल में भी घटा था। प्रदेश की राजनीति पर बारीकी से नजर रखने वालों का आकलन है कि अबकी बार धूमल विरोधी धड़ा अधिक सूझबूझ से कदम बढ़ा रहा है। विरोधी गुट के सत्ता में भागीदार मंत्री व विधायकगण पार्टी की बैठकों-कार्यक्रमों से नदारद रह कर मात्र सांकेतिक रूप से अपना रोष प्रदर्शन कर रहे हैं, जबकि सत्ता से बाहर उपेक्षित पड़े लोगों ने सरकार को कटघरे में खड़ा करते हुए ‘भ्रष्टाचार मुक्ति मोर्चा’गठित कर दिया।
भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शांता कुमार भी इसी रणनीति के तहत असंतुष्टों की गतिविधियों के पीछे अपना हाथ होने से इनकार कर रहे हैं ताकि पहले की तरह उन पर हाईकमान के द्वारा असंतुष्टों को शांत करने की जिम्मेदारी न थोपी जा सके।
कांगड़ा जिले में भाजपा सांसद राजन सुशांत पहले ही सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। अब कुछ और नेता अपने पास भाजपा सरकार में कथित भ्रष्टाचार की फाइल होने का दावा करते घूम रहे हैं। बैठकों के दौर चल रहे हैं। शीध्र ही कोई बड़ा धमाका होने का प्रचार किया जा रहा है।
हालांकि पिछले कुछ वर्षों में कांगड़ा जिला में भाजपाई गुटबाजी काफी शांत हो गई थी। शांता समर्थक नेताओं ने अपने आपको काफी हद तक परिस्थितियों के अनुकूल ढाल लिया था। लेकिन इसे प्रदेश में मुख्यमंत्री प्रो. प्रेमकुमार धूमल के एकछत्र राज के रूप में देखा जाने लगा था और फिर इस स्थिति के कुछ दुष्परिणाम भी सामने आने लगे। प्रो. धूमल के खास समर्थक होने के कारण सिंचाई एवं जनस्वास्थ्य मंत्री रविन्द्र सिंह रवि आदि का हस्तक्षेप दूसरे मंत्रियों-विधायकों के विधानसभा क्षेत्रों में बढऩे लगा। जनसभाओं में टिकटों की घोषणाएं भी होने लगीं और शांता समर्थक नेताओं को हाशिए पर धकेल देने के संकेत भी दिए जाने लगे।
रविंद्र सिंह रवि का विधानसभा क्षेत्र थुरल पुनर्सीमांकन की भेंट चढ़ गया तो स्वाभाविक रूप से वे अपने लिए नए क्षेत्र की तलाश में थे। इससे ज्वालामुखी में खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री रमेश धवाला की नींद हराम हो गई। श्री धवाला ने देहरा में अपने लिए स्थान तलाशने का प्रयास किया तो वहां धूमल समर्थक कृपाल परमार ने दावेदारी पेश कर दी। उद्योग मंत्री किशन कपूर के धर्मशाला विधानसभा क्षेत्र में भी किसी और नेता को प्रोजेक्ट करने की बातें होने लगीं। ऐसे में शांता समर्थकों को यहां एक बार फिर से सिर उठाने के लिए मजबूर होना पड़ा।
जानकारों का कहना है कि उत्तराखंड और कर्नाटक राज्यों में बागी भाजपाइयों की जीत ने भी यहां असंतुष्टों की उम्मीदों को प्रोत्साहित किया है। इस समय भाजपा राष्ट्रीय स्तर पर सत्ता में वापसी के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही है और इसके लिए अन्ना हजारे की भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम का अधिक से अधिक लाभ लेने की फिराक में हैं। माना जा रहा है कि ऐसी स्थिति में प्रदेश में यदि भ्रष्टाचार को लेकर कोई बड़ा बखेड़ा खड़ा होता है तो शायद भाजपा हाई कमान मुख्यमंत्री धूमल का पहले की तरह खुलकर बचाव करने की स्थिति में न रहे। असंतुष्ट भाजपाई यहां इसी का लाभ उठाने की फिराक में है। आने वाले समय में कुछ और तमाशे देखने को मिल सकते हैं।