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रामपुर बुशहर। रामपुर उपमंडल में पंद्रहबीश क्षेत्र के सरपारा गांव में शुक्रवार को जल नाग देवता अपने आकर्षक नए मंदिर में विराजमान हो गए। मंदिर की प्रतिष्ठा के लिए आयोजित समारोह में मेजबान जल नाग देवता समेत मेहमान के रूप में विभिन्न क्षेत्रों के छह देवता भी शरीक हुए। पहाड़ी संस्कृति की यह अनूठी झलक देखने के लिए हजारों की संख्या में लोग वहां मौजूद थे। मंदिर की ओर से क्षेत्र के सभी लोगों एवं उनके नाते रिश्तेदारों को बाकायदा निमंत्रण भेजा गया था।
सबसे दिलचस्प एवं उल्लेखनीय बात यह रही कि मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा में पहले की तरह कोई पशु बलि नहीं दी गई बल्कि कारदारों ने नई सोच के साथ यह कार्य अत्यंत सात्विक ढंग से संपन्न किया। यहां इस तरह के धार्मिक अनुष्ठानों में सैकड़ों की संख्या में पशु बलि दी जाती रही है। लेकिन देवता के कारदारों ने इस बार यह कार्य बिना किसी बलि के निष्पादित किया। समारोह में शरीक होने के लिए बाहर से आए देवताओं के देवलुओं को भी स्पष्ट रूप से कह दिया गया था कि उन्हें बलि किसी भी सूरत में नहीं दी जाएगी। बताया गया कि स्थानीय इष्ट देव ने भी लोगों की इस सोच पर अपनी मोहर लगा दी।
उल्लेखनीय है कि पंद्रहबीश के सरपारा गांव में जल नाग देवता का मंदिर वर्ष 2005 में गांव समेत जल कर राख हो गया था। उसके बाद पुन: मंदिर निर्माण की प्रक्रिया शुरू की गई। मंदिर के लिए दुर्लभ लकड़ी पर आकर्षक नक्काशी कराने के प्रयास में निर्माण की अवधि सात वर्ष लंबी खिंच गई, क्योंकि अब दुर्लभ एवं बारीक काष्ठ कला के कारीगर मुश्किल से ही मिलते हैं। मंदिर निर्माताओं का यह भी प्रयास था कि लकड़ी में उकेरे जाने वाले चित्रों के माध्यम से नौ नागों
की उत्पति को भी दर्शाया जाए। इसलिए इस कार्य में काफी दिक्कतें भी आईं। मंदिर कमेटी के अध्यक्ष मोहन लाल कपाटिया, पूर्व उपप्रधान राजेश, वर्तमान
प्रधान वीना परमार, उपप्रधान यशपाल जिष्टू आदि ने बताया कि मंदिर में दुर्लभ लकड़ी पर आकर्षक नक्काशी की गई है ताकि भावी पीढ़ी भी आस्था के प्रतीक इन स्थलों को लंबे समय तक याद रख सके।
प्राण प्रतिष्ठा समारोह में हिस्सा लेने आए मेजबान देवता सरपारा जल नाग सहित देवता नाग देथवा अरसू, रचोली जाख देवता, तुनन नाग, जाखरू नाग, धारा सरगा व कानधार नाग आदि शामिल थे। विदाई से पूर्व क्षेत्र की महिलाओं ने देवताओं को फूलों, नोटों व बादाम की मालाओं से लाद दिया। मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा, मेहमान देवताओं का स्वागत और विदाई का नजारा देखते ही बनता था। पहाड़ी संस्कृति की यह झलक देख कर लोग भाव विभोर हो उठे।