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राजधानी में भूख और कुपोषण संबंधी एक रिपोर्ट जारी करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, ”कुपोषण की समस्या पूरे देश के लिए शर्म की बात है. सकल घरेलू उत्पाद में लगातार हो रही बढ़ोत्तरी के बावजूद देश में कुपोषण का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है।”
कुपोषण की समस्या को खत्म करने में सरकारों की नाकामी की ओर इशारा करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि भले ही समेकित बाल विकास योजना (आईसीडीएस) कुपोषण से लडऩे के लिए सरकार के पास मौजूद सबसे कारगर हथियार है, लेकिन अब केवल इस योजना के सहारे नहीं रहा जा सकता।
मनमोहन सिंह ने कहा कि हमें उन राज्यों पर खासतौर से ध्यान केंद्रित करना होगा जहां कुपोषण सबसे ज्यादा है और इस समस्या को बढ़ावा देने वाली परिस्थितियां मौजूद हैं।
उन्होंने कहा कि नीति निर्माताओं और योजनाओं को लागू करने वालों को स्पष्ट रुप से यह समझना होगा कि इस समस्या का सीधा संबंध शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता, पीने के पानी की समस्या और पोषण से है।
देश में 42 प्रतिशत बच्चे कुपोषित
भूख और कुपोषण को लेकर नंदी फाउंडेशन और ‘सिटिजंज अलाएंज अगेंस्ट मैलन्यूट्रिशन’ नामक संगठन की ओर से जारी इस रिपोर्ट के मुताबिक कुपोषण की वजह से भारत में आज भी 42 फीसदी से ज्यादा बच्चे सामान्य से कम वजन के हैं।
मनमोहन सिंह ने कहा कि इस रिपोर्ट में यह सामने आया है कि कुपोषण बढ़ा है, लेकिन पिछले सात साल में 100 जिलों के सर्वे में यह भी स्पष्ट हुआ है कि हर पांच में से एक बच्चा ही अपनी उम्र के लिहाज से स्वस्थ और जरूरी वजन की सीमा पार कर पाया है।
सिटिजंज अलाएंज अगेंस्ट मैलन्यूट्रिशन के सदस्य और उड़ीसा से सांसद जय पांडा के मुताबिक भारत में यह समस्या कितनी गंभीर है यह इस बात से साबित होता है कि भारत के आठ राज्यों में जितना कुपोषण है उतना अफ्रीका और सहारा उपमहाद्वीप के गरीब से गरीब देशों में भी नहीं है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि ये जरूरी है कि स्कूली शिक्षकों को भी पोषण संबंधी जानकारियां हों और इस समस्या को लेकर खासतौर पर बढ़ती उम्र की बालिकाओं पर ध्यान केंद्रित किया जाए।