उस समय डा. यशवंत सिंह परमार पैदल ही क्षेत्र के नेताओं के साथ सोलन बाज़ार होते हुए राजगढ़ की ओर चल पड़े। तभी किसी दुकानदार ने लम्बे लोइया वाले लोगों की ओर देख कर कहा, “देखो पहाड़िये जा रहे हैं।” डा.
—-
हिमाचल प्रदेश में किसी समय ऊपरी क्षेत्रों में जब बहुत कम सुविधाएं थीं तो मध्यवर्ती शहरी क्षेत्रों में पहाड़ियों (पहाड़ीजनों) को हेय भाव से देखा जाता था। उन्हें उपेक्षा में पहाड़िया कह कर बुलाया, संबोधित किया जाता था। लेकिन बाद में जब पहाड़ों में सेब क्रांति आई और वहां सड़कों, शिक्षण व स्वास्थ्य संस्थानों की भी सुविधाएं पहुंच गईं तो स्वभाविक रूप से ‘पहाड़िया’ शब्द सम्मान का सूचक बन गया है। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि पहाड़ियों को सम्मान दिलाने की यह शुरुआत बहुत पहले सिरमौर जिला में तत्कालीन मुख्यमंत्री यशवंत सिंह परमार ने की थी और इस संबंध में एक दिलचस्प एवं सच्ची कहानी भी आज तक चर्चा में है।
यह उस समय की बात है जब सोलन से राजगढ़ को सड़क ही नहीं होती थी। प्रथम मुख्यमन्त्री और हिमाचल निर्माता डा. यशवंत सिंह परमार पैदल ही क्षेत्र के नेताओं के साथ सोलन बाज़ार होते हुए राजगढ़ की ओर चल पड़े। तभी किसी दुकानदार ने लम्बे लोइया वाले लोगों की ओर देख कर कहा, “देखो पहाड़िये जा रहे हैं।”
डा. परमार ने दुकानदार का यह ताना सुना और उसी समय साथ चल रहे सहयोगियों से पूछा, “बताओ कौन- कौन आज के बाद अपने नाम के साथ पहाड़िया शब्द लगाएगा ?” तीन लोगों ने कहा, “हम लगाएंगे।” वो तीन लोग थे- केशबा राम, बस्ती राम और हेतराम जी (चित्र में)। उसके बाद ये तीनों जिंदगीभर ‘पहाड़िया’ के नाम से मशहूर रहे। सिरमौर में अन्य भी बहुत से लोगों ने उनका अनुसरण किया और पहाड़ियों को सम्मान दिलाया।
आज केशबा राम ‘पहाड़िया’ और बस्ती राम ‘पहाड़िया’ तो नहीं रहे, मगर 90 वर्षीय हेतराम ‘पहाड़िया’ जी (चित्र में) आज भी शान से हमारे बीच मौजूद हैं। ज्यादातर लोग इन्हें पहाड़िया जी के नाम से ही जानते हैं। वे अच्छे कवि हैं, अच्छे वैद्य हैं और आज भी बड़ा सा थैला उठाये अपनी लेखन सामग्री हमेशा साथ रखते हैं। वे वैद्य सूरतसिंह जी के अंतरंग सहयोगी रहे हैं।