उत्तरकाशी। भारत- चीन युद्ध के दौरान भगदड़ में पीछे छूट गए देवी देवताओं की पूजा- अर्चना के लिए सीमावर्ती गांव जादूंग में एक अनूठा मेला लगता है, जिसमें सीमा पर तैनात आईटीबीपी के जवान भी उत्साह के साथ भाग लेते हैं। यह धार्मिक आयोजन स्थानीय ग्रामीणों को युद्ध के समय की यादें ताजा करने का अवसर भी प्रदान करता है। गत सोमवार को भी जादूंग में यह धार्मिक आयोजन धूमधाम से संपन्न हुआ।
भारत- चीन युद्ध (1962) के दौरान सीमावर्ती जादूंग, नेलांग व कारछा गांवों से ग्रामीणों, जिसमें अधिकांशतः भोटिया और जाड़ समुदाय के लोग थे, को हटाना पड़ गया था। उन्हें नीचे बगोरी, डुंडा और हर्षिल में बसाया गया। युद्ध के समय की भगदड़ में वे स्वयं तो किसी तरह पलायन कर गए, लेकिन इनके ईष्ट- लाल देवता, चैन देवता व रिंगाली देवी पीछे ही छूट गए। बाद में स्थिति सामान्य होने पर वे अपने ईष्ट देवी देवताओं की पूजा अर्चना के लिए वहां आने लगे और बाद में यह एक वार्षिक अनुष्ठान ही बन गया।
बगोरी के पूर्व प्रधान नारायण सिंह ने बताया कि सोमवार को भोटिया और जाड़ समुदाय के लोग ढोल दमाऊं के साथ देवी- देवताओं की डोली लेकर भारत- चीन सीमा पर स्थित जादूंग गांव पहुंचे और पूजा- अर्चना के साथ युद्ध के समय की यादें भी ताजा कीं। वहां पांडव चौक में महिलाओं और पुरुषों ने रांसो- तांदी नृत्य किया और पौराणिक गीत गाए। इस दौरान सीमा पर तैनात आईटीबीपी के जवान भी कार्यक्रम में शामिल हुए।
शाम होते ही ग्रामीण वापस बगोरी लौट आए। ग्रामीणों के साथ कुछ पर्यटक भी जादूंग पहुंचे थे। ट्रैकिंग संचालक तिलक सोनी ने बताया कि जादूंग क्षेत्र में नदी, झरने और ट्रांस हिमालय की खूबसूरत पहाड़ियां हैं सभी का मन मोह लेते हैं।