चंडीगढ़। पढऩे-सुनने में थोड़ा अटपटा भले ही लगे, लेकिन हरियाणा का एक गांव ऐसा भी है जहां लड़कों के मुकाबले लड़कियों की संख्या आधी भी नहीं है। इससे बड़ी
यूं तो झज्जर जिला ही लिंगानुपात को लेकर बदनाम है। यह देश का अकेला ऐसा जिला है जहां वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक 1000 लड़कों पर लड़कियों की संख्या केवल 774 थी। जिले के बरहाणा गांव में लिंगानुपात की स्थिति बद से बदतर है। वर्ष 2010 की जनगणना में यहां 1000 लड़कों पर केवल 378 लड़कियां थीं। गांव के युवा सरपंच प्रदीप कुमार के मुताबिक लाख प्रयासों के बावजूद अभी भी यह संख्या 400 के करीब ही है।
वर्ष 2010 में इस गांव में कुल 203 बच्चों का जन्म हुआ था, जिसमें 148 लड़के थे, जबकि महज 55 लड़कियां थीं। जब यह मुद्दा विश्व स्तर पर उछला तो आंकड़ों में हेराफेरी आरंभ हो गई। इस हेराफेरी का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि वर्ष 2011 में यहां 164 बच्चों के जन्म का आंकड़ा सामने आ रहा है जिसमें 94 लड़के एवं 70 लड़कियां बताई जा रही हैं।
सभी पहलुओं पर गंभीरता से विचार किया जाए तो सरपंच प्रदीप कुमार के आंकड़ों को ही प्रमाणिक करार दिया जा सकता है। जिले के उप सिविल सर्जन डा. अशोक शर्मा भी कमोबेश इसी आंकड़े को सत्यता के अधिक करीब बताते हैं, क्योंकि कुछ ही समय में बहुत बड़ा अंतर नहीं आ सकता। सच यह भी है कि नए तथा युवा उपायुक्त अजित बालाजी जोशी जिले में लिंग अनुपात सुधारने तथा लड़कियों की स्थिति बेहतर बनाने के लिए भरसक प्रयास कर रहे हैं। सभी अल्ट्रासाउंड क्लीनिकों पर एक्टिव ट्रेकर लगा दिए गए हैं और रंग यात्रा नामक सांस्कृतिक महोत्सव से लोगों की परंपरागत सोच बदलने का भी प्रयास हुआ है। पहले के मुकाबले धीरे-धीरे ही सही पर स्थिति में थोड़ा सुधार हो रहा है।
झज्जर में विवाह के लिए नहीं मिल रहीं लड़कियां
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