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देहरादून। भारत हो या पाकिस्तान ‘वनवासियों’ का जम कर उत्पीडऩ हो रहा है। दोनों देशों में अंग्रेजों से समय के बने वन कानून लागू हैं। पूंजीपतियों को भूमि उपलब्ध कराने के लिए वनवासियों को वनों खदेड़ा जा रहा है। वनवासियों का यह दर्द देश के विभिन्न नेशनल पार्कों, सेंचुरीज और टाइगर रिजर्व क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए देहरादून में आयोजित तीन दिवसीय सम्मेलन के जनसुनवाई कार्यक्रम में उभरा। इसमें भाग लेने के लिए पाकिस्तान,बंगलादेश और नेपाल के लोग भी यहां पहुंचे हैं।
राष्ट्रीय वन जन श्रमजीवी मंच द्वारा आयोजित इस सम्मेलन में 16 वनाधिकारों से जुड़े मामलों की सुनवाई की गई। संबंधित क्षेत्रों में रहने वालों ने साफ किया कि वे आदिम जीवन जीने को मजबूर हैं और वनाधिकारी उन्हें प्रताडि़त करते हैं।
देहरादून के गीतांजलि गार्डन में आयोजित इस सम्मेलन के पहले दिन विशेषज्ञों ने बताया कि वनाधिकार कानून 2006 संसद में पास होने के बावजूद वनवासियों को अधिकार नहीं मिल रहे हैं। उन्हें जंगलों से हटाकर उनकी जमीनें पूंजीपतियों को दी जा रही हैं। पार्क के आसपास रिजार्ट बनाए जा रहे हैं और रिजार्ट की आड़ में अवैध शिकार के मामले बढ़ रहे हैं। विभिन्न प्रदेशों से आए लोगों का दर्द एक ही था। सुनवाई के लिए बने निर्णायक मंडल में जारजुम, मुन्नालाल, पीसी तिवारी, केएन तिवारी सहित आठ सदस्य शामिल थे। सुनवाई में उठे मामले संबंधित प्रदेशों के वनाधिकारियों के समक्ष रखे जाएंगे। सम्मेलन में उत्तराखंड समेत मध्य प्रदेश, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, बिहार, आंध्र प्रदेश आदि राज्यों के वनवासी भाग ले रहे हैं।
पाकिस्तान में भी उत्पीडऩ
सम्मेलन में आए लेबर पार्टी पाकिस्तान के प्रवक्ता फारूख तारीक ने मीडिया से बातचीत में कहा कि पाकिस्तान में भी वन विभाग वनवासियों का उत्पीडऩ कर रहा है। जंगल बचाने के नाम पर उन्हें जंगल से बाहर निकाला जाता है, जबकि कई पाकिस्तानी सांसद और मेयर खुद के लिए जंगल कटवाते हैं। उन्होंने बताया कि वहां भी भारत की तरह अंग्रेजों द्वारा बनाया गया 1927 का वन कानून लागू है। इस कानून के खिलाफ भारत में चल रहे आंदोलन को समझने वे आए हैं। इसके बाद पाकिस्तान में भी ऐसे आंदोलन की शुरुआत की जाएगी।