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चमोली (गोपेश्वर)। शीतकाल शुरू होते ही चमोली जिले के गांवों में पांडव नृत्य का अनूठा नजारा देखने को मिलता है। इसमें स्थानीय कलाकार युधिष्ठर, अर्जुन, भीम, नकुल और सहदेव का रूप धारण कर परंपरागत परंपरागत लोक गीतों पर नृत्य करते हैं।
मान्यता है कि पांडव अपने जीवन के अंतिम समय में यहां हिमालयी कंदराओं में मोक्ष के लिए आए थे। लिहाजा यहां शायद ही ऐसा कोई गांव होगा जहां पांडव लीला आयोजित न होती हो। पांडव लीला उत्सव के माध्यम से ग्रामीण पांडवों को श्रद्धांजलि देते हुए पूजन करते हैं तथा उज्ज्वल भविष्य के लिए मनौती भी मांगते हैं।
यहां गंगोलगांव में 15 दिवसीय पांडव लीला उत्सव का आयोजन किया गया, जिसमें कलाकारों ने नृत्य और जागर के माध्यम से पांडवों का जीवन वृत्त आकर्षक ढंग से प्रस्तुत किया। इस अवसर पर पांडवों के रूप में पात्रों ने क्षेत्र की खुशहाली के लिए पूजा भी की और अच्छी फसल के लिए मनौती मांगते हुए स्वयं बैलों की तरह जुत कर हल भी चलाया। दर्शक कलाकारों के इस अभिनय देख कर मंत्रमुग्ध हो उठे। आयोजन के अंतिम दिन कलाकारों के साथ अन्य ग्रामीण भी पांडव नृत्य में रातभर झूमते रहे।