कांगड़ा। हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने बज्रेश्वरी देवी मंदिर में बारीदारों को चढ़ावे में से मिलने वाली हिस्सेदारी पर रोक लगा दी है। न्यायाधीश दीपक गुप्ता और न्यायाधीश राजीव शर्मा की खंडपीठ ने कोर्ट के आगामी आदेशों तक यह रोक लगाई है। मंदिर के 55 बारीदारों को बज्रेश्वरी मंदिर के गर्भगृह के चढ़ावे में चालीस फीसदी हिस्सा मिलता था। मंदिर परिसर में स्थापित गोलकों में से पहले उन्हें कोई हिस्सा नहीं दिया जाता था, लेकिन गत अप्रैल माह में मंदिर प्रशासन ने मंदिर के सभी गोलकों से भी बारीदारों को तीस फीसदी हिस्सा देना शुरू कर दिया और इसके अतिरिक्त चुनरियां और प्रसाद भी उन्हें देना शुरू कर दिया गया।
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नगर परिषद कांगड़ा के वार्ड नंबर पांच के वासी दीपक शर्मा ने बारीदारों की यह हिस्सेदारी बढ़ाए जाने के खिलाफ प्रदेश उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की थी। उच्च न्यायालय ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए बारीदारों के हिस्से पर आगामी फैसले तक रोक लगा दी है। उच्च न्यायालय ने जिलाधीश कांगड़ा, भाषा-कला एवं संस्कृति विभाग के प्रधान सचिव और मंदिर अधिकारी को आदेश दिए हैं कि आगामी आदेशों तक चढ़ावे में से बारीदारों को हिस्सा दिए जाने पर रोक लगाई जाए तथा तब तक मंदिर ट्रस्ट इस हिस्से को अपने पास रखे। मंदिर अधिकारी पवन कुमार ने अदालत के इस फैसले की पुष्टि करते हुए कहा कि बज्रेश्वरी देवी मंदिर के बारीदारों को चढ़ावे में से मिलने वाले हिस्से पर रोक लगा दी गई है।
उल्लेखनीय है कि बज्रेश्वरी देवी मंदिर के प्राचीन काल से चले आ रहे पुजारियों के परिवार के सदस्य ही मंदिर के गर्भगृह में विराजमान माता की पिंडी की पूजा-अर्चना करते आ रहे हैं। अन्य किसी को भी मंदिर के गर्भगृह में पूजा-अर्चना करने और माता की पिंडी को छूने का अधिकार नहीं है। वर्ष 1986 में प्रदेश सरकार ने मंदिर का अधिग्रहण कर लिया, जिसके बाद इन पुजारियों को बारी-बारी गर्भगृह में पूजा-अर्चना करने और चढ़ावे में से 40 फीसदी हिस्सा पाने का हक दिया जा रहा है। इसीलिए इन पुजारियों को बारीदार कहा जाता है।