वनों में प्राकृतिक रूप से उगने वाले चिलगोजा के पेड़ों की देखभाल का जिम्मा वन विभाग के पास होता है, लेकिन जनजातीय क्षेत्र के लोगों को वनों से इसके दोहन का अधिकार दिया गया है। जिला परिषद के पूर्व अध्यक्ष विद्यासागर का कहना है कि पहले लोग सावधानी से कोण निकालते थे ताकि अगली फसल भी ठीक आए और वृक्षों को भी नुकसान न हो, लेकिन अब अधिक लाभ के लिए पेड़ों की टहनियों को मनमाने ढंग से काटा जा रहा है। उन्होंने कहा कि किन्नौर में सेब और मटर के बाद चिलगोजा ही लोगों की आय का प्रमुख जरिया है। इसलिए प्रशासन को चाहिए कि वह चिलगोजे के अवैज्ञानिक दोहन पर सख्ती से रोक लगाए।
उल्लेखनीय है कि चिलगोजा दुनिया के तीन देशों- भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में ही पाया जाता है। भारत में इसके जंगल जिला किन्नौर और चंबा जिले के पांगी उपमंडल में ही हैं। आजकल इन जंगलों से चिलगोजा के कोण इकट्ठे करने का कार्य जोरों पर हैं। किन्नौर जिले में हर साल 1500 से 2000 क्विंटल चिलगोजे का उत्पादन होता है। पौष्टिक, स्वादिष्ट और औषधीय गुणों से युक्त होने के कारण इसके बाजार में अच्छे दाम मिल जाते हैं। स्थानीय मार्किट में ही चिलगोजा 6-7 सौ रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बिक जाता है और अंतर्राष्ट्रीय मार्किट में तो इसकी कीमत तीन-चार हजार रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच जाती है। चिलगोजा के कोण पेड़ों से निकलने के बाद दो हफ्तों तक किसी सूखी सुरक्षित जगह पर रखे जाते हैं। उसके बाद इन कोणों से चिलगोजा के (फल) बीज निकाले जाते हैं और फिर उन्हें बाजार में बेच दिया जाता है।
स्थानीय वासी डा. सूर्य नेगी का कहना है कि किन्नौर में चिलगोजे के वृक्षों का अस्तित्व खतरे में है। जिस तरह मनमाने ढंग से चिलगोजे के कोण वृक्षों से निकाले जा रहे हैं, उससे वृक्षों को भारी क्षति पहुंच रही है। सरकार व प्रशासन को समय रहते इस दिशा में कठोर पग उठाने चाहिए।
चिलगोजे के पेड़ बीस से चालीस मीटर तक ऊंचे होते हैं। ये शुष्क एवं पथरीली जगह पर पांच से नौ हजार फुट तक की ऊंचाई पर उगते हैं। किन्नौर में चिलगोजा के जंगल हैं। लोग जंगलों से ही चिलगोजा इकट्टा करते हैं। इसे न तो स्प्रे की जरुरत है और न ही खाद की। यह पूर्ण रूप से जैविक जंगली उत्पाद है। फसल 15 महीने में तैयार होती है। पहली फसल उतरने से पहले ही दूसरी फसल के कोण निकलने लगते हैं। इससे आने वाली फसल की स्थिति का भी एक साल पहले ही पता चल जाता है। एक पेड़ से पच्चीस से चार सौ तक कोण निकलते हैं। इस अत्यंत पौष्टिक फल चिलगोजे की तासीर गर्म होती है। इसलिए इसका सेवन सर्दियों में ही करने की सिफारिश की जाती है। चिलगोजा को किन्नौर में नियोजा भी कहते हैं।
चिलगोजे पर अवैज्ञानिक दोहन की मार
जनजातीय क्षेत्र किन्नौर में चिलगोजा के वृक्षों पर ठेकेदारों का कहर टूट पड़ा है। चिलगोजा के बड़े पैमाने पर अवैज्ञानिक दोहन की खबरें हर ओर से आ रही हैं, लेकिन प्रशासन आंखें मूंदे हुए है। ठेकेदार अधिक मुनाफा कमाने के लिए मजदूरों से वृक्षों की टहनियां काटवा कर कोण इकट्ठे करवा रहे हैं। इससे न केवल अगली फसल प्रभावित हो रही है, बल्कि इन वृक्षों के अस्तित्व के लिए भी संकट उत्पन्न हो गया है। किन्नौर जिले में अब केवल 2000 हेक्टेयर में ही चिलगोजे के पेड़ बचे हैं और इसका क्षेत्रफल लगातार घटता जा रहा है।
Advertisement