धर्मशाला। जम्मू-कश्मीर में सुधारते हालात हिमाचल प्रदेश के पर्यटन उद्योग पर भारी पडऩे लगे हैं। पर्यटकों का रुख कश्मीर घाटी की ओर
वास्तव में हिमाचल प्रदेश ठोस पर्यटन नीति के अभाव में पर्यटकों को बांधे रखने में नाकाम ही रहा है। कायदे से हिमाचल में पर्यटन की क्षमता, स्थायित्व, संभावना और अधोसंरचना को समझा ही नहीं गया। केवल कंक्रीट के होटल मनाली, शिमला, मकलोडगंज, डलहौजी आदि में खड़े करके ही अपनी जिम्मेदारी को पूरा मान लिया गया है। इस बात का बहुत कम ध्यान रखा गया है कि पर्यटक यहां से संतुष्ट होकर जाएं ताकि वे न केवल दोबारा यहां आना चाहें बल्कि अपने जान पहचान के लोगों को भी इसके लिए प्रेरित करंे।
प्रदेश में दो छोटी रेल लाइनों का भी पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए के लिए पूरा उपयोग नहीं हो पाया है। पर्यटक स्थलों में पार्किंग तक की सुविधाएं नहीं हैं। पुलिस जब गलत जगह पार्क किए गए वाहनों के चालान करती है तो पर्यटक उससे भी यही प्रश्न करते हैं कि -वाहन यहां खड़े न करें तो फिर करें कहां? पुलिस के पास इसका कोई जवाब नहीं होता। प्रदेश के प्रमुख आधा दर्जन पर्यटक स्थलों का ही मुआयना करें तो ट्रैफिक जाम, पार्किंग अभाव और लूट के प्रभाव से पर्यटक न तो खुद दूसरी बार यहां आना चाहता है और न ही दूसरों को यहां आने देता है।
पहाड़ों का आकर्षण रज्जू मार्गों से कई गुणा बढ़ जाता है। हिमाचल प्रदेश में बीते बीस वर्षों में अनेक रज्जू मार्गों की स्कीमें तो बनीं, लेकिन वे कागजों तक ही सामित रहीं। पूरे प्रदेश में एक भी बड़ा मनोरंजन पार्क नहीं है। यहां घने जंगल हैं, लेकिन उसमें ट्री हाउस का कंसेप्ट नहीं जोड़ा गया, जबकि विदेशों में ट्री हाउस बहुत लोकप्रिय हो रहे हैं। यहां बड़ी विद्युत परियोजनाओं के बड़े-बड़े एवं अत्यंत खूबसूरत जलाशय हैं, लेकिन उन्हें पर्यटनीय गतिविधियों के लिए विकसित नहीं किया जा सका है।
हिमाचल प्रदेश को पर्यटन राज्य का नाम तो दिया जाता है, लेकिन यहां सरकारी स्तर पर ऐसे कोई भी प्रयास देखने में नहीं आते, जिसमें पर्यटक यहां कुछ दिन ठहर सकें। जब तक यहां पर्यटकों को अधिक समय तक ठहरने के लिए प्रेरित नहीं किया जाएगा, तब तक इस उद्योग में स्थायित्व की उम्मीद नहीं की जा सकती।
ब्रिटिश हुकूमत द्वारा सजाये गए शिमला को हिमाचल की सरकारें वल्र्ड क्लास टूरिस्ट डेस्टीनेशन नहीं बना पाईं और न ही महामहिम दलाईलामा की मौजूदगी से धर्मशाला-मकलोडगंज का भाग्य संवार पायीं। लाहुल-स्पीति और किन्नौर की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि तथा बौद्ध मठों के इतिहास में भी पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। महाराणा प्रताप सरोवर में हर वर्ष आने वाले लाखों विदेशी परिंदों से भी पर्यटकों को आकर्षित किया जा सकता है। लेकिन इस दिशा में बहुत कम काम हुआ है।
हिमाचल देश भर के सबसे शांत और खूबसूरत प्रदेश है। उसके बावजूद यदि पर्यटकों का अधिकतर रुझान पड़ोसी राज्य जम्मू-कश्मीर की ओर ही रहता है तो यह कुछ और नहीं बल्कि नीतिगत रूप से हमारी कमजोरी का ही परिणाम है। इस बारे में गंभीरता से सोचने की नितांत आवश्यकता है।