शांता कुमार एक युवक को साथ लिए पत्रकारों के पास आए और उनका परिचय कराते हुए बोले- “यह जगत प्रकाश नड्डा हैं। इन्हें हिमाचल की राजनीति में स्थापित करने दिल्ली से लाया हूं। आप सभी मित्रों का सहयोग चाहिए।”
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हिमाचल प्रदेश में भाजपाई राजनीति फिर से करवट बदलने को तैयार लगती है। जेपी नड्डा ने मुख्यमंत्री पद के लिए ताल ठोंक दी है। संकेतों में यह भी उछाला जा रहा है कि हाई कमान भी ऐसा ही चाहता है। पूर्व मुख्यमंत्री प्रो. प्रेमकुमार धूमल के पुत्र सांसद अनुराग ठाकुर को निर्विरोध बीसीसीआई (भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड) का अध्यक्ष बनाया गया है। इसलिए मान लिया गया है कि नड्डा के मामले में धूमल अब शांत रहेंगे। ऐसे में अब पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार की भूमिका क्या रहेगी, इस पर सबकी नजर है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने हाल ही में कुल्लू में आयोजित भाजपा के प्रशिक्षण शिविर में साफ कह दिया, “हाई कमान यदि चाहेगा तो मैं मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनूंगा।” हालांकि प्रो. प्रेम कुमार धूमल ने तो इस पर अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, लेकिन अनुराग ठाकुर ने बयान दे दिया कि- “प्रदेश का मुख्यमंत्री वही बनेगा, जिसे हाईकमान चाहेगा।” राजनीतिक गलियारों में इन बयानों को काफी अर्थपूर्ण माना जा रहा है। मीडिया ने कुछ जगह तो उत्साह में आकर यहां तक लिख दिया था कि प्रो. धूमल को कहीं राज्यपाल बना कर भेजा जा रहा है। हालांकि इस पर आगे कोई चर्चा नहीं हुई। लेकिन चर्चा जो हो रही है वह ये कि हाई कमान ने किसी समय प्रो. धूमल को मुख्यमंत्री बनाने के लिए शांता कुमार को भी शांत किया था। लेकिन क्या वे शांत रहे…?
शांता की भाजपाः हिमाचल प्रदेश में किसी समय भाजपा की पहचान शांता कुमार के नाम से ही थी। उन्हें ‘हिमाचल का वाजपेयी’ कहा जाता था। लेकिन कुछ ही समय बाद यहां पार्टी में शांता कुमार बनाम ठाकुर जगदेव चंद हो गया और शक्ति के दो केंद्र बन गए। शांता कुमार ने राजपूत नेता जगदेव चंद का कद छांटने के लिए प्रो. प्रेम कुमार धूमल को उभारा। इसी तरह बिलासपुर के सुरेश चंदेल और जेपी नड्डा को भी शांता ने आगे बढ़ाया।
कुछ संस्मरणः *शिमला में वर्ष1991-92 में भाजपा के पुराने कार्यालय में पार्टी प्रदेशाध्यक्ष का चुनाव होने जा रहा था। भटियात के किशोरी लाल वैद्य और हमीरपुर से प्रो. प्रेमकुमार धूमल दावेदार थे। मैंने यूं ही भाजपा के एक वरिष्ठ नेता से पूछ लिया- “क्या होने वाला है?” उन्होंने कहा, “शांता जी धूमल के साथ खड़े हैं, इसलिए धूमल ही जीतेंगे।” बाद में हुआ भी वही।
* अयोध्या प्रकरण में धारा 356 के तहत प्रदेश में अपनी सरकार गिर जाने के बाद एक दिन शांता कुमार ने होली डे होम, शिमला में प्रेस वार्ता बुलाई। हम पत्रकारों की भीड़ समय पर वहां पहुंच गई। पत्रकार वार्ता शुरू होने से पूर्व ही अनौपचरिक रूप से शांता कुमार एक युवक को साथ लिए पत्रकारों के पास आए और उनका परिचय कराते हुए बोले- “यह जगत प्रकाश नड्डा हैं। इन्हें हिमाचल की राजनीति में स्थापित करने दिल्ली से लाया हूं। आप सभी मित्रों का सहयोग चाहिए।”
* उसी दौरान एक भाजपाई मित्र ने मालरोड पर टहलते हुए कहा- “शांता कुमार को भी पता नहीं क्या हो गया है। जेपी नड्डा और सुरेश चंदेल जैसों को उंगली पकड़ाकर आगे बढ़ा रहे हैं। बाकियों को धुआं दे रखा है।” इसके कुछ ही समय बाद हुए उपचुनाव में भाजपा की बुरी तरह पराजय हुई। जेपी नड्डा सहित भाजपा के केवल आठ विधायक ही जीत पाए थे।
* अभी ज्यादा समय नहीं बीता था। मैं उस समय जालंधर में एक अखबार में उप संपादक था। भाजपा के नागपुर में चल रहे एक महाधिवेशन से आई किसी रिपोर्ट पर न्यूज एडिटर ने कुर्सी पर लगभग उछलते हुए कहा- “बेड़ा गर्क! धूमल, नड्डा, चंदेल सभी ने शांता को घेर लिया है। हिमाचल में पार्टी की हार के लिए सभी एक स्वर में शांता कमार की नीतियों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।”
मैंने कहा- “नहीं, ऐसा नहीं हो सकता।” न्यूज एडिटर अब तक सामान्य हो गए थे। बोले, “रिपोर्ट आ चुकी है। यही हुआ है। आखिर इसी को तो राजनीति कहते हैं।”
प्रदेश में भाजपा की राजनीति फिर से करवट बदलने लगी है। मुकाबला नड्डा बनाम धूमल होने वाला है। दोनों ही शांता कुमार के शिष्य हैं। दोनों को ही उनके सहारे की जरूरत पड़ेगी। अब देखना यह है कि शांता किसे गले लगाएंगे और किसे दूर रखेंगे।