हिमाचल में सेब बागवानी की शुरुआत कोटगढ़ में नहीं, बल्कि कुल्लू के पास बंदरोल में हुई थी। वैसे आम मान्यता यही है कि यहां सेब बागवानी की शुरुआत शिमला जिला के कोटगढ़ में स्व. सत्यानंद स्टोक्स ने की थी। राज्य में सेब बागवानी के सौ वर्ष पूरे होने पर हाल ही में कोटगढ़ में एक भव्य समारोह भी हुआ था। यह सही है कि स्व. सत्यानंद स्टोक्स ने अमरीका से सेब की जो वैरायटियां लाईं, वही यहां सबसे अधिक कामयाब हुईं, लेकिन उनसे पहले भी सेब हिमाचल में उगाया जा चुका था।
हिमाचल में सबसे पहले कुल्लू के पास बंदरोल में वर्ष 1870 में सेब का पहला बागीचा लगा था। उसे लगाने वाले एक अंग्रेज कैप्टन आरसी ली थे। उन्होंने इस बागीचे का नाम रखा था बंदरोल ऑर्चर्ड। क्योंकि कैप्टन ली अंग्रेज थे, इसलिए उन्होंने सेब के पौधे इंगलैंड से मंगाए थे, जोकि इंग्लिश और अन्य यूरोपीय वैरायटियों के थे। उनके अनुसार कैप्टन ली के बाद कई दूसरे अंग्रेजों जैसे- कैप्टन एटी बैनन, मिस्टर थिओडोर, मि डब्ल्यू एच. डोनाल्ड, कर्नल रेन्निक, मि. डफ, मि. मैके, मि. मिन्नीकेन आदि ने कुल्लू और मनाली के बीच भिन्न- भिन्न स्थानों पर सेब और अन्य फलों के बाग़ लगाए। ये सब बाग़ उन्नीसवीं सदी में लग गए थे और कुल्लू का एरिया सेब के फलों के लिए मशहूर हो चुका था। उस समय सडक़ की सुविधा नहीं थी, इसलिए फलों को खच्चरों और कुलियों द्वारा बाहर भेजा जाता था। कुल्लू के सेब ग्राहकों में उसी समय काफी लोकप्रिय हो चुके थे और इनको पार्सलों द्वारा भारत के विभिन्न स्थानों में भेजा जाता था। कुल्लू के सेब का पार्सलों द्वारा बिक्री का सिस्टम बाद में भी काफी वर्षों तक चलता रहा।
लोगों की यह धारणा है कि सेब की बागबानी हिमाचल में स्वर्गीय सत्यानन्द स्टोक्स ने शुरू की थी, लेकिन यह सही नहीं है। हालांकि स्वर्गीय स्टोक्स का योगदान भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। स्टोक्स अमेरीकन थे, इसलिए उन्होंने सेब के पौधे अमेरीका की नर्सरियों से मंगवाए। उन्होंने यह काम 1916 में किया था। उनके द्वारा मंगवाई गई सेब की वैरायटियों में गोल्डन, रेड और रॉयल डिलीशियस वैरायटियां भी थीं, जो हिमाचल की जलवायु के बहुत ही अनुकूल निकलीं और कुल्लू के अंग्रेजों द्वारा मंगवाई गयीं इंग्लिश किस्मों से ज्यादा लोकप्रिय हुईं और अब तक लोकप्रिय हैं। लेकिन प्रदेश में सेब की खेती की शुरुआत करने का श्रेय कुल्लू के कैप्टन ली को ही जाता है।
मोरी इस बात की पुष्टि आप एनआर कौड़ा द्वारा लिखित और पंजाब हॉर्टीकल्चरल जर्नल में 1965 में छपे लेख दी ‘डिवेल्पमेंट आफ फ्रूट इंडस्ट्री इन कुल्लू’ को पढ़कर भी की कर सकते हैं। स्वर्गीय कौड़ा पंजाब के वरिष्ठ फल विशेषज्ञ थे, जो वे कुछ वर्ष हिमाचल कृषि विभाग में भी संयुक्त निदेशक रहे थे।