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खाद्य सुरक्षा विधेयक में 63.5 प्रतिशत आबादी को सस्ते दामों में अनाज प्रदान करने का प्रावधान किया गया है। खाद्य सुरक्षा विधेयक का बजट पिछले वित्तीय वर्ष के 63,000 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 95,000 करोड़ रुपये करने का प्रस्ताव है। विधेयक में कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए 1,10,000 करोड़ रुपये का निवेश करने का भी प्रस्ताव है। ग्रामीण क्षेत्रों में 75 प्रतिशत आबादी को इस विधेयक का लाभ दिया जाएगा, जबकि शहरी इलाकों में कुल आबादी के 50 फीसदी लोगों को खाद्य सुरक्षा प्रदान की जाएगी।
इसके अतिरिक्त गर्भवती महिलाओं, बच्चों को दूध पिलाने वाली महिलाओं, आठवीं कक्षा तक पढऩे वाले बच्चों और बूढ़े लोगों को पका हुआ खाना मुहैया करवाया जाएगा। स्तनपान कराने वाली महिलाओं को महीने के 1,000 रुपये भी दिए जाएंगे। नया कानून लागू होने पर इससे कम दाम में गेहूं और चावल पाना निर्धन लोगों का कानूनी अधिकार बन जाएगा।
रविवार शाम दिल्ली में प्रधानमंत्री निवास पर यूपीए सहयोगियों तथा कुछ कांग्रेसी सदस्यों की चिंताओं को दूर करने के बाद मंत्रिमंडल की बैठक में खाद्य सुरक्षा विधेयक को मंजूरी दे दी गई थी।
कुछ सामाजिक संस्थाओं और वामपंथी गुटों का मानना है कि जन वितरण में धांधली रोकने के लिए इसमें बीपीएल जैसी कोई श्रेणी नहीं होनी चाहिए और सभी को सस्ती दरों पर खाद्य पदार्थ बांटे जाने चाहिए।
कांग्रेस ने साल 2009 के अपने चुनावी घोषणा पत्र में इस कानून को लाने का वादा किया था। राष्ट्रपति ने भी जून 2009 में संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित करते हुए इसकी घोषणा की थी। इससे सरकारी खजाने पर 27,663 करोड़ रूपए का अतिरिक्त भार पड़ेगा।
विधेयक में लाभ प्राप्त करने वालों को प्राथमिकता वाले परिवार और सामान्य परिवारों में बांटा गया है। प्राथमिकता वाले परिवारों में गरीबी रेखा से नीचे गुजर बसर करने वाले और सामान्य कोटि में गरीबी रेखा से उपर के परिवारों को रखे जाने की बात कही गई है। प्रत्येक प्राथमिकता वाले परिवारों को तीन रुपये प्रति किलोग्राम की दर से चावल और दो रुपये प्रति किलोग्राम की दर से गेहूं उपलब्ध कराने की बात कही गई है। इस विधेयक के कानून में बदल जाने के बाद अनाज की मांग 5.5 करोड़ मीट्रिक टन से बढ़ कर 6.1 मीट्रिक टन हो जाएगी।