हरिद्वार। प्रमुख तीर्थ हरिद्वार में मृतक परिजनों की हड्डियां गंगा में विसर्जित करने की सदियों पुरानी परंपरा रही है। मान्यता है कि ऐसा करने से मृतक की आत्मा को शांति मिलती है। यह भी मान्यता है कि तीर्थ स्थान में यदि किसी बुजुर्ग की मृत्यु हो जाए तो शुभ होता है। लेकिन अभी तक ऐसा पहले कभी नहीं सुना था कि कोई परिजन अपने बुजुर्ग को ही मरने के लिए गंगा किनारे छोड़ गया हो। गत दिवस हरकी पौड़ी में एक बीमार बुजुर्ग के असहाय पड़े मिलने से यही आशंका जताई जा रही है।
हरिद्वार में अलकनंदा घाट पर मेला नियंत्रण भवन के पीछे गुरुवार सुबह से पड़े एक बुजुर्ग की आंखें अपनों के इंतजार में बोझिल होने लगी हैं। अब तो उसकी उम्मीद भी टूटने लगी है और वक्त के साथ- साथ सांस भी भारी होने लगी है। हरकी पौड़ी पर स्थायी रूप से रहने वाले लोगों ने इस वृद्ध से कुछ जानने के प्रयास किया, लेकिन बीमारी और कमजोरी के चलते वह कुछ भी नहीं बोल पा रहा। शुक्रवार को मेला कैंटीन के संचालक ने बुजुर्ग को अपने हाथ से खाना खिलाने का प्रयास किया, लेकिन वह नहीं खा सका।
मेला नियंत्रण भवन के पीछे मेला कंटीन की चहारदीवारी के समीप पड़े इस बुजुर्ग की आंखें कभी खुलती हैं और फिर बंद हो जाती हैं। देखने से ही लगता है कि कोई इन्हें यहां छोड़ गया है। स्वयं यहां पहुंचने की इसकी क्षमता नहीं लगती। बीमारी और कमजोरी के कारण बोलने में अक्षम यह बुजुर्ग अपना नाम व पता भी ठीक से नहीं बता पा रहा। हरकी पौड़ी पर दुकान लगाने वाले एक व्यक्ति ने बताया कि यह बुजुर्ग गुरूवार सुबह से एक ही स्थान पर पड़ा है। सामान के नाम पर इसके पास केवल एक कंबल है।
सिटी मैजिस्ट्रेट जय भारत सिंह ने पूछने पर बताया कि उन्हें भी इसकी सूचना मिली है। बुजुर्ग को अस्पताल में भर्ती कराया जाएगा। इसके लिए संबंधित अधिकारियों को निर्देश दे दिए गए हैं।