लखनऊ। उत्तर प्रदेश के स्थानीय निकाय चुनाव में EVM से छेड़छाड़ की खबरों के बीच फिर से प्रश्न उठ खड़ा हुआ है कि क्या निर्वाचन आयोग और भाजपा में वास्तव में ही कोई तालमेल है? बुधवार को स्थानीय निकाय चुनाव के लिए मतदान के दौरान कुछ जगह EVM से छेड़छाड़ की शिकायतें मिलीं। वही शिकायतें जो बीते विधानसभा चुनाव के दौरान भी मिली थीं कि- बटन कोई भी दबाओ- वोट भाजपा को चला जा रहा है।
कानपुर नगर निगम के वार्ड-58 महाराजपुर के तिवारीपुर में EVM से छेड़छाड़ सामने आने पर भाजपा के अतिरिक्त सभी प्रत्याशियों और उनके समर्थकों ने खूब हंगामा किया। प्रदर्शनकारियों को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा। कुछ लोगों को हिरासत में भी लिया गया।
प्रदर्शनकारियों ने इस दौरान कैबिनेट मंत्री सतीश महाना के खिलाफ जमकर नारेबाजी की और आरोप लगाया कि भाजपा EVM में धांधली करके चुनाव जीतने का प्रयास कर रही है। इस वार्ड में भाजपा से कैलाश पांडेय, सपा से अशोक पांडेय, बसपा से राजीव उपाध्याय, आप से साजिद नरगिस चुनाव लड़ रहे हैं।
कांग्रेस से समर्थन प्राप्त निर्दलीय प्रत्याशी रोहित कटियार ने चुनाव में गड़बड़ी की बात कहकर आरोप लगाया कि EVM मशीनों में छेड़छाड़ की गई है जिसकी वजह से कोई भी बटन दबाओ, वोट भाजपा को ही जा रहा है। सबसे पहले बसपा समर्थक एक मतदाता ने यह गड़बड़ी पकड़ी और सभी का ध्यान इस ओर आकर्षित किया।
प्रशासन ने बाद में इस EVM को सीज कर वहां नई EVM लगाई। कुछ और जगहों से भी इसी तरह की खबरें आई हैं, जो सोशल मीडिया में वायरल हो रही हैं, लेकिन तथाकथित मेनस्ट्रीम मीडिया इस पर खामोश है। बताया जाता है कि इसी तरह की शिकायतों पर प्रशासन ने शाम तक 70 के करीब EVM मशीनों को सीज कर वहां नई मशीनें लगाईं।
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में नगर निकाय चुनाव के पहले चरण में बुधवार 22 नवंबर को पांच नगर निगमों, 71 नगर पालिका परिषदों और 154 नगर पंचायतों के लिए मतदान हुआ। पहले ही दिन EVM मशीनों में गड़बड़ी की शिकायतें सामने आईं।
सोशल मीडिया में सबसे ज्यादा प्रश्न यही पूछा जा रहा है कि जिस भी EVM गड़बड़ी सामने आती है तो वह केवल भाजपा के पक्ष में ही फिक्स क्यों पाई जाती है? क्या यह निर्वाचन आयोग की मिली भगत का नतीजा है?
उल्लेखनीय है कि हाल ही में हिमाचल प्रदेश और गुजरात के विधानसभा चुनावों की घोषणा के समय भी चुनाव आयोग पर उंगलियां उठी थीं। हिमाचल में चुनाव आचार संहिता काफी पहले लागू कर दी गई थी, जबकि गुजरात में भाजपा को मनचाही घोषणाएं, शिलान्यास, उद्घाटन आदि के लिए भरपूर समय दिया गया था। इस बार चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर लगातार उंगलियां उठ रही हैं।