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पेट्रोल के बाद केंद्र सरकार अब डीजल की कीमत पर से भी सरकारी नियंत्रण को समाप्त करने जा रही है। देश के वित्त राज्य मंत्री नमो नारायण मीणा ने राज्य सभा में एक लिखित उत्तर में बताया, ”सरकार सैद्धांतिक रूप से डीजल की कीमतों पर से सरकारी नियंत्रण को समाप्त करने के लिए राजी है, लेकिन इस तरह का कोई भी प्रस्ताव रसोई गैस के लिए विचाराधीन नहीं है।”
देश में सरकार ने पेट्रोल की कीमतों पर से सरकारी नियंत्रण समाप्त कर दिया है, लेकिन रसोई गैस, कैरोसीन और डीजल की कीमतें सरकार ही तय करती है। भारत पेट्रोलियम पदार्थों की अपनी जरुरत का 80 फीसदी हिस्सा हिस्सा आयात करता है और सरकार के सबसिडी के खर्चे में सबसे बड़ी राशि इन्हीं पर खर्च होती है।
मीणा ने कहा कि सरकार ने अब तक डीजल की कीमतों का निर्धारण अपने हाथ में रखा था, क्योंकि सरकार यह चाहती थी कि आम आदमी पर इसकी कीमतों का असर ना पड़े। साल 2012 की शुरुआत से ही अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में भिन्न भिन्न कारणों से पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतें ऊंचीं बनी हुई हैं।
चालू वित्तीय वर्ष के लिए भारत सरकार ने पेट्रोलियम पदार्थों पर सबसिडी के लिए 43580 करोड़ रुपयों का प्रवधान किया है, जिसमें से करीब 40000 करोड़ रुपये तेल कंपनियों को अपने सस्ते दामों पर इंधन बेचने के लिए हर्जाने के तौर देना तय किया है। पिछले वित्तीय वर्ष में सरकार ने तेल कंपनियों को 65000 करोड़ रुपये दिए थे।
सरकार का कहना है की तेल पर दिए जाने वाली सबसिडी के कारण उसका वित्तीय घाटा बढ़ता ही जा रहा है। पिछले वित्तीय वर्ष में भारत का वित्तीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद का कुल 5.9 फ़ीसदी था। इस वित्तीय वर्ष में सरकार ने इसे कम कर के 5.1 करने का लक्ष्य रखा है।