नई दिल्ली। कृषि के क्षेत्र में शोध से जुड़ी एक संस्था सीजीआईएआर का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण भविष्य में केला ही करोड़ों
विश्व खाद्य सुरक्षा पर संयुक्त राष्ट्र की कमेटी के आग्रह पर विशेषज्ञों के एक दल ने ये जानने की कोशिश कि दुनिया की 22 सबसे महत्वपूर्ण कृषि संबंधी सामग्रियों पर जलवायु परिवर्तन का कितना असर पड़ेगा। विशेषज्ञों का कहना है कि कैलोरी प्रदान करने के लिहाज से दुनिया की तीन सबसे बड़ी फसलें मक्का, चावल और गेहूं हैं, जिनका उत्पादन कई विकासशील देशों में घटेगा।
रिपोर्ट के अनुसार ठंडे मौसम में बढिय़ा उगने वाली आलू की फसल को जलवायु परिवर्तन की वजह से नुकसान हो सकता है। इन बदलावों के कारण कई तरह के केलों की खेती का मार्ग प्रशस्त हो सकता है। ये बात उन इलाकों पर भी लागू हो सकती है, जहां अभी आलू उगाया जाता है।
इस रिपोर्ट के लेखकों में से एक डॉ. फिलिम थोर्नटन ने बताया कि केले की अपनी कुछ सीमाएं हैं, लेकिन निश्चित जगहों पर वो आलू का अच्छा विकल्प हो सकता है।
दक्षिण एशिया में कसावा खाने में अहम भूमिका निभा सकता है। रिपोर्ट कहती है कि गेहूं दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण फसल है, जिसमें प्रोटीन और कैलोरी होती हैं। लेकिन शोध बताता है कि विकासशील देशों में गेहूं के सामने संकट मंडरा रहा है, क्योंकि कपास, मक्का और सोयाबीन की फसलों के मिलने वाले अच्छे दामों की वजह गेहूं की खेती सिमट रही है। इस तरह जलवायु परिवर्तन के कारण इस पर और ज्यादा खतरा मंडरा रहा है। खास कर दक्षिण एशिया में एक विकल्प कसावा हो सकता है जो जलवायु के विभिन्न दबावों को झेल सकता है।
कृषि और खाद्य सुरक्षा शोध समूह (सीसीएएफएस) में जलवायु परिवर्तन निदेशक ब्रूस कैंपबेल कहते हैं कि जिस तरह के बदलाव भविष्य में होंगे, अतीत में ऐसे बदलाव पहले हो चुके हैं। वो बताते हैं, ‘दो दशक पहले तक अफ्रीका के कुछ हिस्सों में चावल की बिल्कुल खपत नहीं होती थी, लेकिन अब होती है। लोगों ने दामों की वजह से अपने खाने को बदला, इसे पाना आसान है और इसे पकाना भी आसान है। मुझे लगता है कि इस तरह के बदलाव होते रहते हैं और आगे भी होंगे।’ कैंपबेल कहते हैं कि बदलाव वाकई संभव है, इसमें कोई बड़ी बात नहीं है।
पेट भरने के लिए रहना होगा केले के भरोसे
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