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हालांकि इस गिरफ्तारी पर सवाल भी उठ रहे हैं। कहा जा रहा है कि आनंद चौहान पूछताछ के लिए ईडी के चंडीगढ़ कार्यालय में पेश हुए थे। फिर ईडी ने वहां उन्हें क्यों गिरफ्तार किया? ईडी ने पहले भी चौहान से कई बार पूछताछ की है। इसलिए जांच में सहयोग नहीं करने का प्रश्न कहां से खड़ा हुआ?
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शिमला। हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के खिलाफ चल रहे मनीलांड्रिंग मामले में पहली गिरफ्तारी हुई है। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने शनिवार को एलआईसी एजेंट आनंद चौहान को जांच में सहयोग नहीं देने का आरोप लगाते हुए चंडीगढ़ से गिरफ्तार कर लिया। बाद में उन्हें दिल्ली में स्पेशल मनीलांड्रिंग अदालत में पेश किया गया, जहां उन्हें ईडी हिरासत में चार दिन की रिमांड पर भेज दिया गया। अधिकारियों ने बताया कि चौहान को प्रिवेंशन ऑफ मनी लांड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) के तहत गिरफ्तार किया गया है।
अधिकारियों का कहना है कि आनंद चौहान संबंधित मामले में जांच आधिकारी को सहयोग नहीं दे रहे थे। इसलिए उनसे हिरासत में पूछताछ आवश्यक थी। हालांकि इस गिरफ्तारी पर सवाल भी उठ रहे हैं। कहा जा रहा है कि आनंद चौहान पूछताछ के लिए ईडी के चंडीगढ़ कार्यालय में पेश हुए थे। फिर ईडी ने वहां उन्हें क्यों गिरफ्तार किया? ईडी ने पहले भी चौहान से कई बार पूछताछ की है। इसलिए जांच में सहयोग नहीं करने का प्रश्न कहां से खड़ा हुआ?
एलआईसी एजेंट इस केस में महत्वपूर्ण आदमी है। प्रवर्तन निदेशालय और सीबीआई ने शुरुआत में पाया था कि चौहान ही वह आदमी था, जिसने सीएम के कथित विवादित फंड को जीवन बीमा में लगाया था। ईडी ने इससे पहले कई बार इस मामले में चौहान से पूछताछ की थी। इससे पहले एजेंसी ने इस साल ही मुख्यमंत्री की करीब आठ करोड़ की संपत्ति जब्त की थी।
अधिकारियों ने बताया कि आनंद चौहान को कई बार पूछताछ के लिए ईडी के दिल्ली आफिस में पेश होने के लिए नोटिस भेजे गए, लेकिन वह पेश नहीं हुए। इसके बाद शुक्रवार को पता चला कि आनंद चौहान चंडीगढ़ में हैं तो उन्हें चंडीगढ़ में ही ईडी के कार्यालय में पूछताछ के लिए बुलाया गया। घंटों चली पूछताछ के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
यूपीए सरकार के समय वीरभद्र सिंह के इस्पात मंत्री रहते हुए 6.1 करोड़ रुपये की कथित आय से अधिक संपत्ति मामले की जांच चल रही है। वीरभद्र सिंह ने इस आय को सेब के बागीचे से हुई आय बताया था। वर्ष 2013 में दर्ज इस मामले में सीबीआई ने सितंबर 2014 को दिल्ली हाईकोर्ट में स्टेटस रिपोर्ट दायर कर वीरभद्र सिंह को क्लीन चिट दे दी थी। केंद्र सरकार बदलते ही जून 2015 को फिर से इसका जांच खोल दी।