सोलन। ग्रामीणों के सीने पर दनदनाते क्रूर उद्योग और आंखों पर पट्टी बांधे सरकार। जी हां, सोलन जिला के दाड़लाघाट में स्थापित गुजरात अंबुजा सीमेंट कारखाना इसकी ज्वलंत मिसाल है। यह कारखाना अपने प्रदूषण ने समीपवर्ती 60 प्रतिशत तक आबादी को बीमार बना चुका है। बच्चों से लेकर बूढ़े तक सभी सांस की बीमारी से पीड़ित हैं। आंख, नाक, गले व त्वचा संबंधी बीमारियों का भी बोलबाला है।
ग्रामीणों की शिकायत पर हाल ही में इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज (आईजीएमसी) शिमला द्वारा की गई जांच में यह खुलासा हुआ है, जिस पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) भी हरकत में आ गया। मामले की विस्तृत जांच के लिए एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया गया है।
एनजीटी की जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने टिप्पणी की है कि- ‘इस रिपोर्ट से साफ संकेत मिलता है कि सीमेंट फैक्टरी के निकलने वाले ध्वनि और वायु प्रदूषण से ग्रामीणों की सेहत पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। इसकी विस्तृत जांच के लिए समिति गठित की जा रही है।’
समिति में हिमाचल प्रदेश स्टेट लीगल सर्विस प्राधिकरण के सदस्य सचिव या उनके द्वारा नामित सदस्य, पीजीआई चंडीगढ़ के निदेशक द्वारा नामित डाक्टर, आईजीएमसी शिमला द्वारा नामित डाक्टर और केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के निदेशक स्तरीय प्रतिनिधि शामिल शामिल किए गए हैं। समिति को अपनी रिपोर्ट 31 अक्तूबर तक एनजीटी को सौंपनी है। समिति के नोडल अधिकारी हिमाचल प्रदेश स्टेट लीगल सर्विसेज अथारिटी के सदस्य सचिव होंगे।
दाड़लाघाट में गुजरात अंबुजा सीमेंट कारखाने के प्रदूषण से सबसे अधिक साथ लगता रौड़ा गांव प्रभावित है। ग्रामीण पिछले कई वर्षों से शिकायत कर रहे हैं कि सीमेंट कारखाने में होने वाली आवाज, ट्रकों की आवाजाही व हार्न की तेज आवाज ने उनका जीना दूभर कर दिया है। पूरा गांव हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के पूर्व आदेश के आधार पर पुनर्वास योजना के तहत दूसरी जगह जमीन और घर चाहता है, लेकिन सत्ता में इनकी कोई सुनवाई नहीं हो रही। ग्रामीणों की उम्मीदें अब एनजीटी की भावी कार्रवाई पर टिकी है।