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खुला मंच

डा. भीमराव अम्बेडकर के अनमोल विचार…

डा. भीमराव रामजी अम्बेडकर (14 अप्रैल 1891 – 6 दिसंबर 1956) एक उच्च कोटि के विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ और समाज सुधारक थे। उन्होंने दलित बौद्ध आन्दोलन को प्रेरित किया और दलितों से सामाजिक भेदभाव के विरुद्ध बड़ा अभियान चलाया था। अपने राजनीतिक जीवन में उन्होंने श्रमिकों, किसानों और महिलाओं के अधिकारों का भी समर्थन किया। वे स्वतंत्र भारत के प्रथम विधि एवं न्याय मन्त्री, भारतीय संविधान के जनक एवं भारत गणराज्य के निर्माताओं में से एक थे। बाद में वे डॉ॰ बाबासाहब अम्बेडकर के नाम से लोकप्रिय हुए।

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डा. अम्बेडकर ने हिन्दू धर्म में व्याप्त कुरीतियों और छुआछूत की प्रथा से तंग आकर 1956 में बौद्ध धर्म अपना लिया था। मरणोपरांत उन्हें वर्ष 1990 में भारत रत्न, सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित किया गया। वे भारतीय इतिहास के ऐसे एकलौते व्यक्ति हैं, जिन्होंने दलितों और वंचितों को सामाजिक अधिकार दिलाने के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया। उनकी बातें आज भी पीड़ितों और वंचितों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।

आइए जानते हैं डॉ॰ बाबासाहब अम्बेडकर के प्रेरक विचार:

 

  • जब तक आप सामाजिक स्वतंत्रता हासिल नहीं कर लेते, तब तक आपको कानून चाहे जो भी स्वतंत्रता देता है, वह आपके किसी काम की नहीं।

 

  • गुलाम बन कर जिओगे, तो कुत्ता समझ कर लात मारेगी ये दुनिया। नवाब बन कर जिओगे तो शेर समझ कर सलाम ठोकेगी।

 

  • जाति कोई ईंटों की दीवार या कोई कांटों का तार नहीं है, जो हिंदुओं को आपस में मिलने से रोकते हों। जाति एक धारणा है, जो मन की एक अवस्था है।

 

  • हमारे देश में अनेक महात्मा आये और चले गये, परंतु अछूत आज भी अछूत ही बने हुए हैं।
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  • जो क़ौम अपना इतिहास नहीं जानती, वह क़ौम कभी भी इतिहास नहीं बना सकती।

 

  • इंसान सिर्फ समाज के विकास के लिए नहीं पैदा हुआ, बल्कि स्वयं के विकास के लिए पैदा हुआ है।

 

  • एक इतिहासकार, सटीक, ईमानदार और निष्पक्ष होना चाहिए।

 

  • न्याय हमेशा समानता के विचार को पैदा करता है।

 

  • मैं किसी समुदाय की प्रगति को उस समुदाय की महिलाओं ने जो प्रगति हासिल की है, उससे मापता हूं।
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  • बुद्धि का विकास मनुष्य का आखिरी लक्ष्य होना चाहिए।

 

  • एक महान आदमी एक आम आदमी से इस तरह से अलग है कि वह समाज का सेवक बनने को तैयार रहता है।

 

  • जीवन लम्बा होने के बजाय महान होना चाहिए।

 

  • जिस तरह मनुष्य नश्वर है, ठीक उसी तरह विचार भी नश्वर हैं। जिस तरह पौधे को पानी की जरूरत पड़ती है, उसी तरह एक विचार को प्रचार- प्रसार की जरुरत होती है। वरना दोनों मुरझा कर मर जाते हैं।

 

  • इतिहास गवाह है कि जहां नैतिकता और अर्थशास्त्र के बीच संघर्ष होता है, वहां जीत हमेशा अर्थशास्त्र की होती है।
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  • संविधान वकीलों का दस्तावेज मात्र नहीं, यह जीवन का एक माध्यम है।

 

  • एक सफल क्रांति के लिए सिर्फ असंतोष का होना ही काफी नहीं, इसके लिए न्याय, राजनीतिक और सामाजिक अधिकारों में गहरी आस्था का होना भी बहुत आवश्यक है।

 

  • राजनीतिक अत्याचार सामाजिक अत्याचार की तुलना में कुछ भी नहीं है। जो सुधारक समाज की अवज्ञा करता है वह सरकार की अवज्ञा करने वाले राजनीतिज्ञ से ज्यादा साहसी है।

 

  • राष्ट्रवाद का औचित्य तभी है जब वह समाज में जाति, नस्ल व रंग का अन्तर भुलाकर उसमें भ्रातृत्व की भावना को सर्वोच्च स्थान दिलाता हो। 

 

  • यदि हम एक संयुक्त एकीकृत आधुनिक भारत चाहते हैं, तो सभी धर्मों के शास्त्रों की संप्रभुता का अंत होना चाहिए।
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  • समानता एक कल्पना हो सकती है, लेकिन फिर भी इसे एक गवर्निंग सिद्धांत के रूप में स्वीकार करना होगा।

 

  • हमें अपने पैरों पर खड़ा होना है, अपने अधिकारों के लिए लड़ना है तो हमें अपनी ताकत और क्षमता को पहचानना होगा। क्योंकि शक्ति और प्रतिष्ठा संघर्ष से ही मिलती है।

 

  • यदि मुझे लगा कि संविधान का दुरुपयोग किया जा रहा है, मैं इसे सबसे पहले जलाऊंगा।

 

  • निहित स्वार्थों को तब तक स्वेच्छा से नहीं छोड़ा गया है, जब तक मजबूर करने के लिए पर्याप्त बल ना लगाया गया हो।

  

  • जो धर्म जन्म से एक को श्रेष्ठऔर दूसरे को नीचबनाए रखे, वह धर्म नहीं, गुलाम बनाए रखने का षड्यंत्र है।
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  • किसी भी धर्म का चयन सामाजिकता, नैतिकता के आधार पर किया जाना चाहिये। अगर धर्म को ही मनुष्य के लिए सब कुछ मान लिया जायेगा तो अन्य मानकों का कोई मूल्य ही नहीं रह जायेगा।

 

  • धर्म में मुख्य रूप से केवल सिद्धांतों की बात होनी चाहिए, यहां नियमों की बात नहीं हो सकती।

 

  • मैं ऐसे धर्म को मानता हूं जो स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा सिखाता है।

 

  • मनुवाद को जड़ से समाप्त करना मेरे जीवन का प्रथम लक्ष्य है।

 

  • हिंदू धर्म में विवेक, कारण और स्वतंत्र सोच के विकास के लिए कोई स्कोप नहीं है।
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  • मैं यह नहीं मानता और न कभी मानूंगा कि भगवान बुद्ध विष्णु के अवतार थे। मैं इसे पागलपन और झूठा प्रचार-प्रसार मानता हूं।

 

  • मैं गौरी, गणपति और हिन्दुओं के अन्य देवी-देवताओं में आस्था नहीं रखूंगा और न ही उनकी पूजा करूंगा।

 

  • हालांकि, मैं एक हिंदू पैदा हुआ था, लेकिन मैं सत्य निष्ठा से आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मैं हिन्दू के रूप में मरूंगा नहीं।

 

  • मुझे वह धर्म पसंद है जो स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व सिखाता है।

 

  • धर्म मनुष्य के लिए है न कि मनुष्य धर्म के लिए।

 

-संकलन- एचएनपी सर्विस

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एचएनपी सर्विस

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