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बजट में किसानों को दिया कुछ नहीं, छीना हरेक मद में

नई दिल्ली। करीब 2087 वर्ष पहले पैदा हुए गौतम बुद्ध असलियत को नापने का एक पैमाना देकर गए थे,  ‘तथ्यों से सत्य तक पहुंचो।’ प्याज न खाने वाली वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने बुधवार को मोदी सरकार का जो बजट पेश किया है, देश के किसान का उसे इसी कसौटी पर कस कर देखना इसकी वास्तविकता से रूबरू करवा सकता है। आइये कुछ तथ्यों पर नजर डाल लेते हैं-

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भाजपा के चुनावी घोषणापत्र में किये गए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुरूप लागत से डेढ़ गुना C2+50% करने की बात से मोदी सरकार पहले ही मुकर चुकी थी। इस बार के बजट में बी दिया कुछ नहीं, छीना हरेक मद में।

🔺 कृषि के लिए बजट अनुमान पिछली वर्ष के 1,24,000 करोड़ रूपये से घटाकर 1,15,531.79 करोड़ रूपये कर दिया।

🔺 प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि में पिछली साल की तुलना में कोई वृद्धि नहीं की गयी। सरकारी दावे के अनुसार 12 करोड़ किसानों को इसका लाभ मिलता है। उस हिसाब से बजट चाहिए कम से कम 72,000 करोड़ रुपया। दिया है सिर्फ 60,000 करोड़ रूपये।

🔺 प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का आवंटन पिछले वर्ष 15,500 करोड़ था, इसे इस साल घटाकर 13625 करोड़ कर दिया गया है।

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🔺 बहुप्रचारित हरित क्रान्ति के लिए 2 वर्ष पहले के बजट में 6,747 करोड़ थे। पिछली साल भी कुछ नहीं दिया, इस बार भी निल बटा सन्नाटा है।

🔺 खाद की सब्सिडी में जबरदस्त कटौती है। पिछले बजट में 2,25,000 करोड़ रुपये थे जो इस बजट में 50 हजार करोड़ घटाकर सिर्फ 1,75,000 करोड़ रह गए हैं यानी 22 % की कटौती है।

🔺 जिस प्राकृतिक खेती को लेकर सबसे ज्यादा गाल बजाये जा रहे हैं उसके लिए आवंटन है मात्र 459 करोड़ रुपया।

🔺 राष्ट्रीय कृषि विकास की योजना को भी 10,433 करोड़ से घटाकर 7,150 करोड़ कर दिया गया है।

🔺 प्रधानमंत्री किसान सिंचाई योजना में भी कटौती है। पिछली वर्ष यह 12,954 करोड़ थी। इस बजट में घटाकर 10,787 करोड़ कर दिया।

🔺 मूल्य समर्थन के लिए बाजार में सरकारी हस्तक्षेप की योजना पिछले बजट में भी नाममात्र की कुल जमा 1500 करोड़ थी। इस बार इसे खत्म ही कर दिया गया।

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🔺 ग्रामीण रोजगार के लिए पिछले बजट में 1,53,525.41 रुपये का प्रावधान था- इस बार इसमें 52 हजार करोड़ की कमी करके 1,01,474.51 करोड़ कर दिया गया है।

🔺 राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा क़ानून के तहत खाद्यान्न खरीदे जाने के लिए पिछले बजट के संशोधित अनुमान 72,282.50 करोड़ थे, इस बजट में फकत 59,793.00 करोड़ रह गए हैं। यानि इसमें भी 12500 करोड़ मतलब 17 प्रतिशत की कमी हुई है।

🔺 एफसीआई को दी जाने वाली खाद्यान्न सब्सिडी भी 1,45,920 करोड़ रूपये से घटाकर 1,37,207 करोड़ रूपये कर दी गयी है।

🔺 गाजेबाजे और पब्लिसिटी के साथ घोषित कृषि संरचनागत फण्ड में पिछली साल सिर्फ 500 करोड़ का प्रावधान था, इस बार उसे भी घटाकर मात्र 150 करोड़ कर दिया गया है।

🔺 नफरती साम्प्रदायिकता इस बजट में भी साफ़ साफ़ दिखाई है। अल्पसंख्यकों के विकास की योजना पर आवंटन 1810 करोड़ से एकदम नीचे लाकर मात्र 610 करोड़ कर दिया गया है।

बुद्ध ने यह भी कहा था कि- ‘सवाल उठाओ।’ 

🔴 सवाल उठाओ कि खेती किसानी की हर मद में कटौती की गयी, मजदूर कर्मचारियों को कुछ दिया नहीं, शिक्षा बचाने रोजगार बढ़ाने के लिए झुनझुना तक नहीं है, महिलायें कभी इनकी प्राथमिकता पर रही नहीं, आदिवासियों को आदिवासी तक मानते नहीं।

तो फिर  क्या भारत का सारा खजाना अडानी की धोखाधड़ी की वेदी पर आहुति देने के लिए है? अम्बानी और अमरीका की तिजोरियां भरने के लिए है?

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लेखक बादल सरोज, सामाजिक, आर्थिक टिप्पणीकार एवं ‘लोकजतन’ साप्ताहिक के संपादक हैं।

एचएनपी सर्विस

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