नई दिल्ली। हाल में एक आरटीआई आवेदन के ज़रिये इस बात का खुलासा हुआ कि 2013 से 2015 के बीच देश के सरकारी बैंकों ने 1.14 लाख करोड़ रुपये के कर्जे़ माफ़ कर दिये। इनमें से 95 प्रतिशत कर्जे़ बड़े और मझोले उद्योगों के करोड़पति मालिकों को दिये गये थे। यह रकम कितनी बड़ी है, इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि अगर ये सारे कर्ज़दार अपना कर्ज़ा लौटा देते तो 2015 में देश में रक्षा, शिक्षा, हाईवे और स्वास्थ्य पर खर्च हुई पूरी राशि का खर्च इसी से निकल आता।
इसमें हैरानी की कोई बात नहीं। पूंजीपतियों के मीडिया में हल्ला मचा-मचाकर लोगों को यह विश्वास दिला दिया जाता है कि अर्थव्यवस्था में घाटे के लिए आम लोग ज़िम्मेदार हैं, क्योंकि वे अपने पूरे टैक्स नहीं चुकाते, बिल नहीं भरते या शिक्षा, अस्पताल, खेती आदि में सरकारी सब्सिडी बहुत अधिक है आदि-आदि। वास्तव में ये सब बकवास है। देश की ग़रीब जनता कुल टैक्सों का तीन-चौथाई से भी ज़्यादा परोक्ष करों के रूप में चुकाती है। मगर इसका भारी हिस्सा नेताशाही और अफ़सरशाही की ऐय्याशियों पर और धन्नासेठों को तमाम तरह की छूटें और रियायतें देने पर खर्च हो जाता है।
इतने से भी उनका पेट नहीं भरता तो वे बैंकों से भारी कर्जे़ लेकर उसे डकार जाते हैं। ग़रीबों के कर्जे़ वसूल करने के लिए उनकी झोपड़ी तक नीलाम करवा देने वाली सरकार अपने इन माई-बापों से एक पैसा नहीं वसूल पाती और फिर कई साल बाद उन्हें माफ़ कर दिया जाता है। दरअसल इस सारी रकम पर जनता का हक़ होता है। करोड़ों लोगों की छोटी-छोटी बचतों से बैंकों को जो भारी कमाई होती है, उसी में से वे ये दरियादिली दिखाते हैं।
आइये अब ज़रा देखते हैं कि इन चोरों में से 10 सबसे बड़े चोर कौन हैं:
(मज़दूर बिगुल से साभार) http://www.mazdoorbigul.net/archives/9201
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