नई दिल्ली। उद्योगपतियों और सत्ता के गठजोड़ ने मजदूरों को निचोड़ने के लिए एक नया खेल शुरू कर दिया है। मजदूरों को धमकियां दी जा रही हैं कि- ‘लौट आओ काम पर, वर्ना बुरा होगा अंजाम।’ उद्योगपति अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के नाम पर चाहते हैं कि उद्योगों में मजदूरों से मनरेगा दिहाड़ी 202 रुपये में 12 घंटे काम लेने की अनुमति हो।
सरकारों ने लॉक डाउन के बहाने काम के घंटे बढ़ा कर बारह कर दिया गया है, कई अन्य श्रम कानूनों में बदलाव किया गया है। यह सुनिश्चित करने के बाद कि लॉक डाउन की अवधि खत्म होने के बाद जब कारखाने खुले तो मज़दूरों के बेलगाम शोषण को अंजाम दिया जाय। अब पूंजीपति वर्ग और उसकी मैनेजिंग कमेटी यानी सरकार की सिरदर्दी यह सुनिश्चित करना है कि कारखानों के खुलने के साथ ही मज़दूर तुरंत काम पर वापस लौट जाएं। इस बाबत नए पैंतरे आजमाए जा रहे हैं।
कुछ राज्यों में कारखाने व अन्य प्रतिष्ठानों के पास लॉक डाउन खत्म होने के बाद अगर श्रमिक तय समय सीमा में काम पर वापस नहीं लौटते हैं तो उनके ख़िलाफ़ आधिकारिक तौर पर वेतन काटने या अन्य अनुशासनात्मक कार्रवाई करने की अनुमति होगी।
गुजरात, मध्यप्रदेश, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश के श्रम विभाग अधिकारियों ने एक अख़बार को बताया कि इन राज्यों में श्रमिकों को काम पर वापस लाने के लिए ऐसी एडवाइजरी जारी करने की योजना पर शीर्ष स्तर पर तैयारी चल रही है।
बीते शुक्रवार को क़रीब एक दर्जन नियोक्ता समूह केन्द्रीय श्रम मंत्री से मिला था और केंद्र सरकार से ऐसी एडवायजरी, जो मज़दूरों को काम पर वापस लौटने के लिए बाध्य करे, जारी करने का ‘आग्रह’ किया था।
अभी लॉक डाउन के दरम्यान ही चंद हफ्ते पहले गुजरात के पूंजीपतियों ने सरकार से दो मुख्य मांगें की थीं। पहली, यूनियन बनाने के अधिकार पर रोक लगाया जाय और दूसरी औद्योगिक क्षेत्र के स्थाई व ठेका हर श्रमिक को मनरेगा के तर्ज पर रोज़ाना 202 रुपए की दर से भुगतान की अनुमति हो। पूंजीपतियों ने इन मांगों के साथ अपनी मंशा जाहिर कर दी थी कि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के नाम पर मज़दूरों के जिस्म से लहू का आखिरी कतरा तक निचोड़ लिया जाएगा।
गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश में पहले ही श्रम कानूनों को इस तरह ढीला कर दिया गया है कि सरमाएदारों द्वारा श्रमिकों की ‘भर्ती और छंटनी’ बेहद आसानी से की जा सके। ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि पूंजीपतियों के मुनाफे निचोड़ने कि गाड़ी झटके से गति में आ जाए।
लॉकडाउन के दौरान मजदूरों ने जो फजीहत झेली, यह किसी से छिपी नहीं है। केंद्र से लेकर राज्य सरकारें मजदूरों को ना राशन पानी मुहैया करा सकी ना उनके जाने का इंतजाम ही करा सकी। उल्टा पैदल जा रहे मजदूरों को डंडे से पिटवा गया, क्वारांटाइन सेंटर्स, लेबर कैम्प में मज़दूरों को अमानवीय परस्थिति में कैद किया गया। जो मजदूर इस हमले से बच जाएंगे, उनके लिए शोषण की रूपरेखा तैयार की जा रही है।
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