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क्या बैंकों के डूबने का समय आ गया?

नई दिल्ली। देश के आर्थिक जगत में हलचल मची हुई है। बैंकिंग अर्थव्यवस्था को एक और बड़ा धक्का लगने की आशंका है। भारतीय अर्थव्यवस्था के इतिहास में 27 अगस्त 2018 एक ऐतिहासिक दिन साबित होने जा रहा है। रिजर्व बैंक के एक सर्कुलर के अनुसार 27 अगस्त के बाद देश की 70 बड़ी कंपनियों को दिवालिया घोषित किया जा सकता है, जिससे बैंकों को कम से कम एक लाख करोड़ रुपये की चपत लगेगी और अनेक बैंकों का वजूद खतरे में पड़ जाएगा।  

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आपको याद होगा कि पीएनबी घोटाले पर रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल ने कहा था कि सिस्टम को साफ करने के लिए अगर पत्थर खाने और नीलकंठ बनकर जहर पीने की भी जरूरत पड़ी तो हम उसके लिए भी तैयार हैं।.. तो क्या अब वो दिन आ गया है?

रिजर्व बैंक ने फरवरी 2018 में जारी एक सर्कुलर में यह बिल्कुल स्पष्ट कर दिया था यदि कारपोरेट को कर्ज चुकाने में 1 दिन की भी चूक होती है तो उसे डिफाल्टर मान कर रकम को एनपीए घोषित किया जाए। इसे ‘वन-डे डिफॉल्ट नॉर्म’ कहा गया तथा इसे 1 मार्च से लागू किया गया था

इसी सर्कुलर में रिजर्व बैंक ने कंपनियों को बैंकों के साथ पिछले सभी पुनर्भुगतान संबंधी मसलों को सुलझाने के लिए 1 मार्च, 2018 से 180 दिन का वक्त दिया गया था। इसमें नाकाम रहने पर संबंधित खातों को दिवालिया घोषित किए जाने की प्रक्रिया में शामिल होने के लिए बाध्य किया जा सकेगा। 27 अगस्त को यह मियाद समाप्त होने वाली हैं।

यह कितना खतरनाक सिद्ध हो सकता है, इसे आप इस बात से समझ लीजिए कि ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स कन्फेडरेशन का इस सर्कुलर के बारे में कहना है कि इस प्रावधान से कम से कम एक लाख करोड़ रुपये का नुकसान होगा और इससे बैंकों का वजूद खतरे में पड़ जाएगा। दो दिन पहले आईसीआईसीआई बैंक के चेयरमैन जी सी चतुर्वेदी ने भी कहा कि आरबीआई अपने विवादास्पद ‘एक-दिवसीय डिफॉल्ट मानक’ की समीक्षा करे।

इस सर्कुलर के अनुसार सितंबर में 70 कंपनियों के खिलाफ दीवालिया घोषित किये जाने की कार्यवाही शुरू की जा सकती है। इन कंपनियों पर बैंकों के 3.5 से 4 लाख करोड़ के कर्ज हैं। इन छह महीनों में इन कम्पनियों और बैंकों ने अपने आपस के विवाद निपटाने के लिए कोई प्रयास नहीं किये। सर्कुलर में 200 करोड़ से अधिक बकाये वाली कम्पनियों से 20 फीसदी लेकर रिस्ट्रक्चरिंग की बैंकों को छूट दी गयी थी, लेकिन इस पर भी सहमति नहीं बन पायी।

इस सर्कुलर से भारत की पॉवर सेक्टर की कम्पनियां सबसे अधिक प्रभावित होने जा रही हैं। पहली मार्च को जिन 81 कंपनियों ने डिफॉल्ट किया था, इनमें 38 अकेले पावर सेक्टर की हैं। अडानी पॉवर ओर टाटा पावर जैसी बड़ी कम्पनियां दीवालिया होने जा रही हैं। बैंक ऑफ अमेरिका मेरिल लिंच के अनुसार बिजली कंपनियों पर 2.6 लाख करोड़ कर्ज बकाया है, जिसमें बड़े पैमाने पर रकम NPA होने की संभावना है।

इन पावर कंपनियों ने अपने NPA पर आरबीआई के इस सर्कुलर को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी थी, लेकिन इलाहाबाद हाइकोर्ट ने पॉवर सेक्टर के एनपीए पर आरबीआई के 12 फरवरी को जारी सर्कुलर पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। एक प्रश्न यह भी खड़ा होता है कि क्या इससे देश भर में बिजली का संकट गहरा सकता है? जवाब यह कि बिल्कुल ऐसा हो सकता है, क्योंकि इन कम्पनियों ने 27 अगस्त को लॉक आउट की धमकी भी केंद्र सरकार को दे दी है।

इस सूची में 43 कंपनियां नॉन-पावर सेक्टर की भी हैं। बड़ी कम्पनियों में अनिल अंबानी समूह की रिलायंस कम्युनिकेशंस, रिलायंस डिफेंस एंड इंजीनियरिंग (अब रिलायंस नेवल), पुंजलॉयड, बजाज हिंदुस्तान, मुंबई रेयान, जीटीएल इंफ्रास्ट्रक्चर, रोल्टा इंडिया, श्रीराम ईपीसी, ऊषा मार्टिन, एस्सार शिपिंग और गीतांजलि जेम्स शामिल हैं।

यानी मोदी सरकार की चहेती अडानी समूह की बड़ी कम्पनियां ओर अनिल अम्बानी की रिलायंस डिफेंस जैसी कंपनियां दीवालिया होने की कगार पर खड़ी हैं और आप विडम्बना देखिए कि मोदी सरकार इन्हें राफेल सौदे में डसाल्ट एविएशन से ठेके दिलवा रही है। मोदी खुद अडानी के प्लेन में सफर करते कितनी ही बार नजर आए हैं।

इसलिए मोदी सरकार का पूरा जोर होगा कि किसी भी तरह से 2019 के लोकसभा चुनाव तक यह मामला टल जाए, क्योंकि यदि इन 70 कम्पनियों को दीवालिया घोषित कर गया दिया तो एक झटके में भारत की बैंकिंग व्यवस्था और शेयर बाजार धराशायी हो सकते हैं और भारत की जनता को वक्त से पहले ही न्यू इंडिया और अच्छे दिनों की हकीकत पता चल जाएगी।

(Girish Malviya के फेसबुक वॉल से साभार)

एचएनपी सर्विस

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