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टैक्सियों की चुनौती से सिकुडऩे लगा बसों का बेड़ा

देहरादून (उत्तरकाशी)। उत्तराखंड राज्य के दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों में यातायात के लिए बसों की जगह अब टैक्सियों के रूप में चलने वाले छोटे एवं

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मझौले किस्म के वाहनों ने लेनी शुरू कर दी है। सवारियां ढोने के लिए टैक्सियों की भरमार के कारण बसों के लिए ये रूट घाटे का सौदा बनते जा रहे हैं, जिस कारण बस सेवाएं एक-एक कर बंद होती जा रही हैं। इस मामले में सीमांत जनपद उत्तरकाशी को एक उदाहरण के रूप में लिया जा सकता है, जहां पिछले कुछ ही अरसे में निजी टैक्सियों के कारण एक-एक कर लगभग दो दर्जन बस सेवाएं बंद कर देनी पड़ी हैं। इन दूरस्थ क्षेत्रों में कभी बसें ही आवाजाही का मुख्य साधन हुआ करती थीं, लेकिन अब वहां बहुत कम बसें देखने को मिलती हैं। निजी बस आपरेटर इससे खासे परेशान हैं।
उत्तरकाशी में संयुक्त यातायात रोटेशन व्यवस्था समिति ने ग्रामीण इलाकों से अपनी सेवाओं को समेटना शुरू कर दिया है। बीते कुछ ही अरसे में ग्रामीण अंचलों तक पहुंचने वाली लगभग दो दर्जन बस सेवाएं बंद कर दी गई हैं। इनमें रैथल, हर्षिल, धनारी, लंबगांव, मुखेम, प्रतापनगर, कमद, जोगथ, बनचौरा, राजगढ़ी, पुरोला, विकासनगर आदि की बस सेवाएं प्रमुख हैं।
उत्तरकाशी जनपद में पांच- छह वर्ष पूर्व तक बसों और बस यूनियनों की भरमार थी,क्योंकि वहां यातायात के लिए बस सेवाएं ही इकलौता साधन थीं। लेकिन बाद में निजी टैक्सियों के आने पर बस सेवाओं को कड़ी चुनौती मिलने लगी। इस बीच यह चुनौती इतनी बढ़ गई कि अनेक बस यूनियनों ने तो अपनी सेवाएं बंद करना ही मुनासिब समझा। हालांकि इससे ग्रामीणों को भी काफी परेशानी हो रही है, क्योंकि टैक्सियां अधिकांशत: छोटे-छोटे रूटों पर ही चलती हैं। लंबे रूट की सवारियों के लिए बसें ही सुविधाजनक रहती हैं। लेकिन बदलती तस्वीर के आगे सभी बेबस हैं।
उत्तरकाशी में संयुक्त रोटेशन यातायात व्यवस्था समिति डिपो नं. 4 के अध्यक्ष नरेंद्र कैंतुरा बताते हैं कि बस संचालन के लिए केवल छह महीने का ही सीजन रहता है। सर्दियों में बर्फबारी और बरसात में भूस्खलन के कारण बसों का संचालन मुश्किल हो जाता है। ऐसे में निजी टैक्सी वालों से मिल रही चुनौती जलते में घी का काम कर रही हैं। उन्होंने सरकार से मांग की कि टैक्सियों पर यात्रियों को रोटेशन में सवारियां ढोने पर सख्त पाबंदी लगे।

हिम न्यूज़पोस्ट.कॉम

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