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देहरादून। उत्तराखंड में विद्यार्थियों के अभाव में 2044 प्राइमरी और अपर प्राइमरी स्कूल बंद होने की कगार पर पहुंच गए हैं। प्रदेश सरकार ने निर्णय ले रखा है कि दस से कम छात्र संख्या वाले स्कूलों को बंद कर दिया जाए और इन स्कूलों के विद्यार्थियों को अन्यत्र समायोजित किया जाए। इस सूची में अभी तक राज्य के 2044 स्कूल आ चुके हैं, क्योंकि सरकारी स्कूलों में बुनियादी शिक्षा की हालात लगातार खस्ता होने के कारण अभिभावक तेजी से अपने बच्चों को वहां से हटा कर प्राइवेट स्कूलों में दाखिल करते जा रहे हैं। इन स्कूलों के बंद हो जाने से प्राथमिक शिक्षकों के हजारों पद भी समाप्त हो जाएंगे।
छात्रसंख्या में कमी की यह समस्या दूरदराज और दुर्गम क्षेत्रों के प्राइमरी और अपर प्राइमरी स्कूलों में ज्यादा है। इन स्कूलों में तैनाती के बावजूद शिक्षक जाने से कतराते रहे हैं। पहले इन स्कूलों से शिक्षक कन्नी काटते रहे तो अब बच्चे मुंह मोड़ रहे हैं। प्रदेश के 2044 प्राइमरी और अपर प्राइमरी स्कूलों में छात्रसंख्या दस या इससे कम रह गई है। यह संख्या कुल 15329 सरकारी प्राइमरी और अपर प्राइमरी स्कूलों की 13 फीसद से ज्यादा है। छात्र संख्या में तेजी से गिरावट का अंदाजा इससे भी लग जाता है कि 60 से ज्यादा प्राइमरी स्कूलों में तो छात्रसंख्या शून्य हो चुकी है।
दस से कम छात्र संख्या वाले चिन्हित स्कूलों में पौड़ी जिले में 380, पिथौरागढ़ जिले में 330, अल्मोड़ा में 280, टिहरी में 170, चमोली में 165, देहरादून में 122, उत्तरकाशी में 105, रुद्रप्रयाग में 90, बागेश्वर में 75, चंपावत में 60, नैनीताल में 45 और उधमसिंह नगर जिले में 04 स्कूल शामिल हैं।
छात्रसंख्या घटने की वजह से प्रदेश में 25 छात्रसंख्या से कम स्कूलों की संख्या 7000 को पार कर चुकी है। सरकारी प्राइमरी शिक्षा के प्रति यही रुझान रहा तो निकट भविष्य में और भी बड़ी तादाद में विद्यालयों के बंद होने की नौबत आ सकती है।
उत्तराखंड के शिक्षा मंत्री प्रसाद नैथानी कहते हैं कि, ‘प्राइमरी और अपर प्राइमरी स्कूलों में छात्रसंख्या में निरंतर गिरावट चिंताजनक है, इनके कारणों का अध्ययन किया जा रहा है। ऐसे स्कूलों के बारे में जल्द ही ठोस नीति बनाई जाएगी, ताकि स्थानीय बच्चों को स्तरीय शिक्षा उपलब्ध हो सके।’