नई दिल्ली। केंद्र में जब मोदी सरकार सत्तारूढ़ हुई थी तो कुछ वामपंथी बुद्धिजीवियों ने वैज्ञानिक तथ्य-विश्लेषण पर आधारित कुछ
भविष्यवाणियां निम्न प्रकार से हैं–
– विदेशों में जमा काला धन का एक पाई भी नहीं आयेगा। देश के हर नागरिक के खाते में 15 लाख रुपये आना तो दूर, फूटी कौड़ी भी नहीं आयेगी।
– कुल काले धन का 80 फ़ीसदी जो देश के भीतर है, उसमें भारी बढ़ोत्तरी होगी।
– विदेशों से आने वाली पूंजी अतिलाभ निचोड़ेगी और बहुत कम रोज़गार पैदा करेगी। निजीकरण की अन्धाधुंध मुहिम में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की जमकर छंटनी होगी। पुराने उद्योगों में बड़े पैमाने पर तालाबन्दी होगी। नतीजतन न केवल ब्लू कॉलर नौकरियों बल्कि व्हाइट कॉलर नौकरियों की भी अभूतपूर्व कमी हो जायेगी। बेरोज़गारी की दर नयी ऊंचाइयों पर होंगी और छात्रों-युवाओं के आन्दोलन बड़े पैमाने पर फूट पड़ेंगे।
– मोदी के ‘श्रम सुधारों’ के परिणामस्वरूप मज़दूरों के रहे-सहे अधिकार भी छिन जायेंगे, असंगठित मज़दूरों के अनुपात में और अधिक बढ़ोत्तरी होगी, बारह-चौदह घण्टे सपरिवार खटने के बावजूद मज़दूर परिवारों का जीना मुहाल हो जायेगा। नतीजतन औद्योगिक क्षेत्रों में व्यापक स्तर पर मज़दूर असन्तोष उग्र संघर्षों के रूप में फूट पड़ेंगे।
– जल, जंगल, ज़मीन, खदान सभी कुछ पहले से कई गुना अधिक बड़े पैमाने पर देशी-विदेशी कॉरपोरेटरों को सौंपे जायेंगे, लोगों को बन्दूक़ की नोंक पर विस्थापित किया जायेगा और उनके हर प्रतिरोध को बर्बरतापूर्वक कुचलने की कोशिश की जायेगी। नया भूमि अधिग्रहण क़ानून लागू होने के बाद किसानों को उनकी जगह-ज़मीन से बलात् बेदख़ल करना एकदम आसान हो जायेगा। खेती में तेज़ी से बढ़ती देशी-विदेशी पूंजी की पैठ छोटे किसानों के सर्वहाराकरण और विस्थापन में अभूतपूर्व तेज़ी ला देगी। शहरों में प्रवासी मज़दूरों और बेरोज़गारों का हुजूम उमड़ पड़ेगा।
– विश्वव्यापी मन्दी और आर्थिक संकट की जिस नयी प्रचण्ड लहर की भविष्यवाणी दुनियाभर के अर्थशास्त्री कर रहे हैं, वह तीन-चार वर्षों के भीतर भारतीय अर्थतन्त्र को एक भीषण दुश्चक्रीय निराशा के भंवर में फंसाने वाली है। महंगाई और बेरोज़गारी तब विकराल हो जायेगी। व्यवस्था का क्रान्तिकारी संकट अपने घनीभूततम और विस्फोटक रूप में सामने होगा।
– उग्र जनउभारों को कुचलने के लिए सत्ता पुलिस और अर्द्धसैनिक बलों का खुलकर इस्तेमाल करेगी। भविष्य के ‘अनिष्ट संकेतों’ को भांपकर मोदी सरकार पुलिस तन्त्र, अर्द्धसैनिक बलों और गुप्तचर तन्त्र को चाक-चौबन्द बनाने पर अधिक बल देगी। इनके सहारे जन-संघर्षों और विद्रोहों को कुचलने के कारण भारतीय राज्य एक ‘पुलिस स्टेट’ जैसा बन जाएगा।
– मोदी के अच्छे दिनों के वायदे का बैलून जैसे-जैसे पिचककर नीचे उतरता जायेगा, वैसे-वैसे हिन्दुत्व की राजनीति और साम्प्रदायिक तनाव एवं दंगों का उन्मादी खेल ज़ोर पकड़ता जायेगा ताकि जन एकजुटता तोड़ी जा सके। अन्धराष्ट्रवादी जुनून पैदा करने पर भी पूरा ज़ोर होगा। इस कड़ी में पाकिस्तान के साथ सीमित या व्यापक सीमा संघर्ष भी हो सकता है।
-मोदी सरकार पांच वर्षों के बाद लोगों के सामने अलग नंगी खड़ी होगी। भारत को चीन और अमरीका जैसा बनाने के सारे दावे हवा हो चुके रहेंगे। मोदीभक्तों को मुंह छुपाने के लिए कोई अंधेरा कोना नहीं नसीब होगा। फिर ‘एण्टी-इन्कम्बेंसी’ का लाभ उठाकर केन्द्र में चाहे कांग्रेस की सरकार आये या तीसरे मोर्चे की शिवजी की बारात, उसे भी इन्हीं नवउदारवादी नीतियों को लागू करना होगा, क्योंकि कीन्सियाई नुस्खों की ओर वापसी अब सम्भव ही नहीं।
भविष्यवाणीकर्ताओं ने अंत में टिप्पणी की – जब तक साम्राज्यवाद विरोधी, पूंजीवाद विरोधी सर्वहारा क्रान्ति की नयी हरावल शक्ति संगठित होकर आगे नहीं आयेगी, देश अराजकता के भंवर में गोते लगाता रहेगा और पूंजीवाद का विकृत से विकृत, वीभत्स से वीभत्स, बर्बर से बर्बर चेहरा हमारे सामने आता रहेगा।