उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में इस वर्ष का सूखा विकराल स्वरुप धारण करता
यह निष्कर्ष स्वराज अभियान द्वारा बुंदेलखंड की सभी 27 तहसीलों के 108 गांवों में किये सर्वेक्षण से सामने आया है। इस सर्वे में कुल 1206 परिवारों (सबसे ग़रीब 399 सहित) का इंटरव्यू किया गया। दशहरा और दिवाली के बीच हुए इस सर्वे में स्वराज अभियान और बुंदेलखंड आपदा राहत मंच के कार्यकर्ताओं ने गांव गांव जाकर सूखे के असर का जायज़ा लिया। सर्वे का निर्देशन योगेन्द्र यादव ने संजय सिंह (परमार्थ औरई), ज़्याँ द्रेज़ (राँची) और रीतिका खेड़ा (दिल्ली) के सहयोग से किया। यह निष्कर्ष सर्वे में लोगों द्वारा दी गयी सूचना पर आधारित है। इसकी स्वतंत्र जांच नहीं की गयी है।
बुंदेलखंड में खरीफ की फसल लगभग बर्बाद हो गयी है। ज्वार, बाजरा, मूंग और सोयाबीन उगाने वाले 90% से अधिक परिवारों ने फसल बर्बादी की रपट दी। अरहर और उड़द में यह प्रतिशत कुछ कम था। केवल तिल की फसल ही कुछ बच पायी है। वहां भी 61% किसानों ने फसल बर्बादी का ज़िक्र किया। सूखे के चलते पीने के पानी का संकट बढ़ रहा है। दो तिहाई गांवों में पिछले साल की तुलना में घरेलू काम के पानी की कमी आई है, आधे के अधिक गांव में पानी पहले से अधिक प्रदूषित हुआ है। दो तिहाई गांव से पानी के ऊपर झगड़े की खबर है। पानी का मुख्य स्रोत हैण्ड-पम्प है, लेकिन सरकारी हैण्ड-पम्पों में एक तिहाई बेकार पड़े हैं।
सर्वेक्षण के सबसे चिंताजनक संकेत भुखमरी और कुपोषण से सम्बधित है। पिछले एक महीने के खान-पान के बारे में पूछने पर पता लगा कि एक औसत परिवार को महीने में सिर्फ़ 13 दिन सब्ज़ी खाने को मिली, परिवार में बच्चों या बड़ों को दूध सिर्फ़ 6 दिन नसीब हुआ और दाल सिर्फ 4 दिन। ग़रीब परिवारों में आधे से ज़्यादा ने पूरे महीने में एक बार भी दाल नहीं खायी थी और 69% ने दूध नहीं पिया था। ग़रीब परिवारों में 19% को पिछले माह कम से कम एक दिन भूखा सोना पड़ा।
सर्वे से उभर के आया कि कुपोषण और भुखमरी की यह स्थिति पिछले 8 महीनों में रबी की फसल खराब होने से बिगड़ी है। सिर्फ़ ग़रीब ही नहीं, लगभग सभी सामान्य परिवारों में भी दाल और दूध का
उपयोग घट गया है। यहां के 79% परिवारों ने पिछले कुछ महीनों में कभी ना कभी रोटी या चावल को सिर्फ़ नमक या चटनी के साथ खाने को मजबूर हुए हैं। 17% परिवारों ने घास की रोटी (फिकारा) खाने की बात कबूली। सर्वे के 108 में से 41 गांवों में इस होली के बाद से भुखमरी या कुपोषण से मौत की रपट भी आई, हालांकि इसकी स्वतंत्र पुष्टि नहीं हो सकी। इस सर्वे में आसन्न संकट के कई और प्रमाण भी आये। एक तिहाई से अधिक परिवारों को खाना मांगना पड़ा, 22% बच्चों को स्कूल से वापिस लेना पड़ा, 27% को ज़मीन और 24% को जेवर बेचने या गिरवी रखने पड़े हैं।
जानवरों के लिए भुखमरी और अकाल की स्थिति आ चुकी है। बुंदेलखंड में दुधारू जानवरों को छोड़ने की “अन्ना” प्रथा में अचानक बढ़ोत्तरी आई है। सर्वे के 48% गांवों में भुखमरी से 10 या अधिक जानवरों के मरने की ख़बर मिली। वहां 36% गांवों में कम से 100 गाय-भैंस को चारे के अभाव में छोड़ दिया गया है। जानवरों के चारे में कमी की बात 77% परिवारों ने कही तो 88% परिवारों ने दूध कम होने की रपट की। मजबूरी में 40% परिवारों को अपना पशु बेचना पड़ा है और पशुधन की कीमत भी गिर गयी है।
इस संकट से निपटने के लिए सरकार और प्रसाशन को तुरंत कुछ बड़े कदम उठाने होंगे। इस संकट की घड़ी में मनरेगा योजना से कुछ लाभ नहीं हो पाया है। एक औसत ग़रीब परिवार को पिछले 8 महीनों में मनरेगा से 10 दिन की मज़दूरी भी नहीं मिली है। सरकारी राशन की स्थिति भी असंतोषजनक है। ग़रीब परिवारों में आधे से भी कम (केवल 42% के पास) बीपीएल या अंत्योदय कार्ड है।
स्वराज अभियान ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री से मिलकर मांग की थी कि कुछ इमरजेंसी कदम उठाये जाएं। यह सर्वेक्षण बुंदेलखंड को लेकर हमारी उस चिंता को सही ठहराता है। सरकार ने इस सम्बन्ध में कई घोषणाएं की हैं। अब ज़रूरत है कि आम लोगों को अविलम्ब राहत पहुंचाई जाए।