बिलासपुर। बिलासपुर जिला के किसान बहुत प्रयोगधर्मी हैं। प्रदेश में सबसे गर्म जलवायु वाले
इस जिले के किसानों ने कुछ वर्ष पूर्व बर्फीले पहाड़ी क्षेत्रों को चुनौती देते हुए अपने खेतों में सफलतापूर्वक सेब का बागीचा लगाकर सबको चौंका दिया था। प्रदेश में बागवानी विभाग ने उसके बाद ही महसूस किया कि यहां निचले क्षेत्रों में लो चिलिंग रिक्वायरमेंट वाली सेब की किस्में लगाई जा सकती हैं। लोगों की इसी प्रयोगधर्मिता के कारण ही बिलासपुर के निकट एक चंदन वन भी विकसित हुआ है। और अब बारी है कॉफी की खेती की…। जी हां, यहां भराड़ी उपतहसील के तहत गांव मझोटी (मरहाणा) के किसान विक्रम शर्मा पिछले कुछ समय से कॉफी उत्पादन का प्रयोग कर रहे हैं और यह प्रयोग अब उस स्तर तक पहुंच गया है कि कॉफी बोर्ड ऑफ इंडिया के विशेषज्ञ भी उनके प्रयासों को सराहते नहीं थक रहे।
बिलासपुर जिला में भराड़ी उप तहसील के तहत गांव मझोटी (मरहाणा) के विक्रम शर्मा वर्ष 1999 में चिकमगलूर (कर्नाटक) गए थे। वहां उन्होंने कॉफी के बागीचे देखे और उससे बहुत प्रभावित हुए। इसी दौरान उनके दिमाग में आया कि कर्नाटक की ही तरह गर्म बिलासपुर में भी कॉफी की संभावनाएं तलाशी जानी चाहिएं। बस फिर क्या था उन्होंने वहां से कॉफी के बीज लिए और यहां आकर खेतों में बो दिए। प्रयास जारी रखा और अंततः कामयाबी ने उनके पैर चूम लिए।
कॉफी बोर्ड ऑफ इंडिया के रिसर्च डायरेक्टर डा. जयराम ने विक्रम के बागीचे का जायजा लेने के बाद कहा, ‘‘कॉफी के इन पौधों की उत्पादन क्षमता को देखते हुए कहा जा सकता है कि हिमाचल के कुछ क्षेत्रों में कॉफी उत्पादन की अपार संभावनाएं हैं। इन पौधों में बीमारी के भी कोई लक्षण देखने में नहीं आए हैं।’’
विक्रम शर्मा का कहना है कि यदि सरकार चाहे तो वे कॉफी की पनीरी तैयार करने और उसे आगे किसानों में वितरित करने में सहायता कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि उनके द्वारा लगाए गए कॉफी के कुछ पौधों से उत्पादन शुरू हो गया है तथा वे फिलहाल वर्ष में 25-30 किलोग्राम कॉफी की पैदावार कर रहे हैं।
कॉफी बोर्ड के रिसर्च डायरेक्टर डा. जयराम के नेतृत्व में मझोटी गांव में कॉफी का जायजा लेने पहुंची टीम में डिप्टी डायरेक्टर हेमंत कुमार, संयुक्त निदेशक डा. पीके और कृषि विभाग के अधिकारी डा. चंद्र दास गुप्ता, डा. आनंद, डा. आरके सिंह आदि भी शामिल थे।