Warning: substr_count(): Empty substring in /home2/himnefg6/public_html/wp-content/plugins/ads-for-wp/output/functions.php on line 1274
चंबा। पशुबलि पर प्रतिबंध के बाद चंबा जिले के विभिन्न मंदिरों में अजीब स्थिति उत्पन्न हो गई है। श्रद्धालुगण पहले की तरह मंदिरों में बकरे या खड्डू चढ़ाने के लिए ला रहे हैं, लेकिन पशुबलि पर प्रतिबंध के कारण उन्हें वहीं खुला छोड़ कर लौट रहे हैं। स्थिति यह हो गई है कि ऐसे बड़ी संख्या में छोड़े गए पशु मंदिर परिसरों में भूखे पड़े हैं तथा पुजारियों को उन्हें संभालना मुश्किल हो गया है। प्रशासन ने भी पल्ला झाड़ते हुए दो टूक कह दिया है कि मंदिरों में छोड़े गए इन पशुओं की देखभाल का जिम्मा संबंधित पंचायत का ही होगा।
शिव नगरी भरमौर और इसके आसपास के धार्मिक स्थलों में श्रद्धालुओं ने बड़ी संख्या में बकरे बांध रखे हैं। भूख से तड़पते इन बकरों को कभी पुजारी तो कभी अन्य श्रद्धालु थोड़ा बहुत चारा डाल रहे हैं। पुजारियों का कहना है कि अदालती प्रतिबंध के कारण ये बेजुबान पशु कटने से तो बच गए हैं, लेकिन इनके चारे का उचित इंतजाम नहीं हुआ तो ये भूखे मर जाएंगे।
हाल ही में भरमौर के निकट एक मंदिर में कुछ श्रद्धालुओं ने 32 बकरे चढ़ाए थे। इनमें 11 की तो बलि दे दी गई, लेकिन स्थानीय कुछ जागरूक लोगों ने प्रतिबंध का हवाला देते हुए बाकी को कटने से बचा लिया। हालांकि इस बात को लेकर वहां काफी विवाद भी हुआ। लेकिन बाद में समझाने पर श्रद्धालुओं ने पशुओं को मंदिर परिसर में ही खुला छोड़ दिया और लौट गए।
पता चला है कि भरमौर की कुगति पंचायत के एक मंदिर में भी गत दिवस बीस से अधिक बकरे बंधे देखे गए। जिले के अन्य मंदिरों में भी यही हाल है। कुगति में स्थानीय लोगों संजय कुमार, अजीत और रेबत राम ने बताया कि वे दर्शन के लिए मंदिर गए तो पाया कि वहां बड़ी संख्या में बकरे भूखे प्यासे पड़े हैं। उस समय तो उन्होंने उन्हें चारा डाल दिया, लेकिन आगे पता नहीं इनका क्या होगा?
कुगति में कार्तिक मंदिर के पुजारी दिलीप कुमार ने कहा कि वे भी मंदिर के आसपास छोड़े गए पशुओं को चारा आदि डाल रहे हैं। ऐसे में उन्हें अन्य कार्य निपटाने में परेशानी हो रही है। उनका कहना था कि प्रशासन को ही इन पशुओं की कोई उचित व्यवस्था करनी चाहिए। स्थानीय लोगों नरेंद्र, विजय कुमार, राकेश, सुरेश कुमार आदि ने भी बताया कि हालांकि हाईकोर्ट ने बलिप्रथा पर रोक लगा दी है, लेकिन उसके बावजूद लोग मन्नत के अनुसार पशुओं को चढ़ाने (बलि) के लिए मंदिरों में ला रहे हैं और समझाने के बाद उन्हें वापस ले जाने के बजाए, वहीं आसपास बांधकर लौट रहे हैं। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि चढ़ाने के लिए लाए गए पशुओं को वापस ले जाना देव परंपरा के खिलाफ माना जाता है।
इस संबंध में भरमौर के एडीएम एलके शर्मा से बात की गई तो उनका कहना था कि यह समस्या उनके ध्यान में आई है। स्थिति को देखते हुए निर्देश दिए गए हैं कि पंचायत क्षेत्र में आते मंदिर में चढ़ाए गए पशुओं की देखभाल पंचायत की ही ओर से होगी। पंचायत प्रधान ही इसकी व्यवस्था देखेंगे।