दंतेवाड़ा (छत्तीसगढ़)। दंतेवाड़ा क्षेत्र के बिंजाम गांव में उदासी छाई हुई है। यहां एक बार फिर मातम का माहौल है।
अगले साल, यानि 2012 में 26 जनवरी के दिन दंतेवाड़ा के कारली स्थित पुलिस लाइन में एक समारोह आयोजित कर मारे गए विशेष पुलिस अधिकारियों को सम्मान दिया गया। बस्तर की तत्कालीन प्रभारी मंत्री ने मारे गए जवानों के परिजनों को मैडल भी दिए। मगर जवानों के परिवारों को झटका तब लगा जब सम्मान में दिए गए मैडलों का रंग उतरने लगा। पता चला कि यह सभी मैडल सोने के नहीं बल्कि प्लास्टिक के हैं।
शहीद योगेश मडियामी के पिता रूपाराम मडियामी के लिए सम्मान का पदक दरअसल अब अपमान का पदक बन गया है। गाँव में बनी उनकी झोपड़ी की दीवार से टंगे-टंगे जैसे अब यह पदक उन्हें चिढ़ा रहा है। दंतेवाड़ा से 12 किलोमीटर दूर अपने गाँव में जब बीबीसी से उनकी मुलाक़ात हुई तो वो काफ़ी आहत नज़र आए। कहने लगे, “मंत्री लता उसेंडी ने पदक देते वक़्त हमसे कहा था कि यह सोने का है और इसे संभाल कर रखना। सोना क्या रहेगा, यह तो लोहे का भी नहीं है। अब पता चल रहा है कि यह तो प्लास्टिक का है। यह हमारे परिवार का सम्मान नहीं, बल्कि अपमान है।”
रूपाराम मडियामी कहते हैं कि प्लास्टिक के मैडल उनके परिवार और उनके बेटे की शहादत का अपमान हैं। नक्सल विरोधी अभियान के दौरान मारे जाने वाले सुरक्षा बल के जवानों को सरकार की तरफ़ से मुआवज़ा दिया जाता है। मगर योगेश और उनके साथ मारे गए जवान छत्तीसगढ़ पुलिस बल के सदस्य नहीं थे, बल्कि वे विशेष पुलिस अधिकारी थे। इसलिए उन्हें मुआवज़े की रक़म भी कम मिली। जिस तरह से मुआवज़े की रक़म दी गई वह भी कम अपमानजनक नहीं था। रूपाराम बताते हैं कि सबसे पहले उन्हें बेटे के दाह-संस्कार के लिए एक लाख रुपये दिए गए थे। फिर तीन महीने बाद उन्हें पांच लाख रुपये और मिले। कुछ ही दिनों बाद उनसे एक लाख रुपये वापस लौटाने को कहा गया।
सरकार की नीति के अनुसार नक्सल विरोधी अभियान में मारे गए सुरक्षा बल के जवानों के परिजनों को अनुकम्पा के आधार पर स्थायी सरकारी नौकरी और मकान भी दिया जाता है। बिंजाम के मारे गए विशेष पुलिस अधिकारियों के आश्रितों को अनुकम्पा के आधार पर नौकरी तो दी गई, मगर दैनिक वेतन भोगी की।
योगेश की बहन प्रभा को दंतेवाड़ा के कन्या छात्रावास में दैनिक वेतन भोगी चपरासी की नौकरी मिली। बख्शु ओयामी के भाई पन्द्रू ओयामी को बालक छात्रावास में रसोइये की नौकरी मिली, जो अस्थाई है। इसी तरह चमनलाल की पत्नी को भी चपरासी की अस्थाई नौकरी दी गई।
बस्तर के प्रभारी छत्तीसगढ़ के मंत्री केदार कश्यप ने बीबीसी से बात करते हुए घटना पर आश्चर्य ज़ाहिर किया और कहा कि वह पूरे मामले की जांच करवाएंगे। वे कहते हैं, “ये एक गंभीर मामला है। हम सुनिश्चित करेंगे कि जिन पुलिस के जवानों ने अपनी जान देकर इलाक़े में शांति स्थापित करने के लिए क़ुर्बानी दी है, उन्हें पूरा सम्मान मिले।”
एक मंत्री के दिए ज़ख्मों और दूसरे मंत्री के मरहम के बीच अब छत्तीसगढ़ में इस बात पर बहस छिड़ गई है कि नक्सल विरोधी अभियान में इतनी राशि के आवंटन के बावजूद मारे गए जवानों के परिजनों को रुसवाई क्यों उठानी पड़ रही है। (बीबीसी हिंदी.कॉम से साभार)