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शिमला। “नगर निगम शिमला अपने कामगारों को पूरे देश की नगर निगमों एवं अन्य निकायों के मुकाबले सबसे अधिक वेतन दे रहा है। पिछले तीन वर्षों में निगम ने अपने वर्करों का जीवन स्तर बेहतर करने के लिए भी अनेक कदम उठाए हैं। इसके बावजूद निगम सैहब सोसाइटी के कामगारों का हड़ताल पर जाना न्यायोचित नहीं है।”
शिमला नगर निगम के महापौर संजय चौहान ने यह बयान मीडिया को संबोधित करते हुए दिया और कहा कि निगम ने पिछले तीन वर्ष के कार्यकाल में सैहब सोसाइटी वर्कर्स के वेतन में 100 प्रतिशत से ज़्यादा की बढ़ोतरी की है। इस दौरान इनका वेतन 3300 रुपये से बढ़ाकर 7700 रुपये प्रतिमाह किया है। इसके अतिरिक्त कामगारों के भविष्य और सामाजिक सुरक्षा के मद्देनजर उन्हें ईपीएफ की सुविधा दी गई और उनके काम के लिए स्वस्थ वातावरण बनाते हुए लांगकोट एवं दस्ताने मुहैया करवाने की व्यवस्था की गई। नगर निगम के अपने कामगारों के प्रति सकारात्मक सोच के कारण ही आज वे पूरे देश की नगर निगमों एवं निकायों के मुकाबले सबसे ज़्यादा वेतन पा रहे हैं। ऐसे में इन कामगारों का हड़ताल पर जाना उचित नहीं माना जा सकता।
संजय चौहान ने कहा कि नगर निगम प्रशासन का जो भी दायित्व बनता है वो किया जा रहा है। कामगार सैहब सोसायटी को निगम में मर्ज करने की मांग कर रहे हैं। निगम को इसमें कोई ऐतराज नहीं है। उन्होंने कहा कि निगम सदन तो काफ़ी पहले सोसाइटी को निगम में मर्ज करने के लिए प्रस्ताव पारित कर सरकार को भेज चुका है। अब यह फैसला प्रदेश सरकार को ही करना है।
उन्होंने बताया कि हड़ताल पर जाने से पहले भी सैहब सोसाइटी वर्कर्स से इस बारे में बात की गयी थी और अभी भी बातचीत चल रही है। इसके फलस्वरूप काफ़ी वर्कर्स काम पर लौट भी आए हैं।
महापौर ने बताया कि इस समय सैहब सोसाइटी में 579 में से 258 वर्कर्स कार्य कर रहे हैं। बाकी को काम पर लौटने के लिए 2 सितंबर को नोटिस जारी किए गये थे, जिस पर 12 वर्कर्स काम पर लौट आए और शेष 28 हड़ताली वर्कर्स को निष्कासित कर दिया गया है। उन्होंने बताया कि अभी शहर में सफाई का कार्य देख रहे सभी 100 वर्कर्स कार्य कर रहे हैं। घरों से कूड़ा इकट्ठा करने वाले कर्मचारियों में 110 लोग कार्य कर रहे है। 29 चालक और 14 सुपरवाइजर भी कार्य कर रहे हैं। कार्यालय कर्मचारियों में भी 5 लोग कार्य कर रहे हैं।