शिमला। हिमाचल प्रदेश सरकार ने गरीब कब्जाधारकों को राहत देने का मन बनाया है। इसके लिए एक विशेष नीति
मुख्यमंत्री ने इसके लिए वित्तायुक्त राजस्व की अध्यक्षता में कमेटी गठित करने के आदेश दिए हैं। यह कमेटी अतिक्रमण के तमाम मामलों की पूरी स्थिति का गहन अध्ययन करने के बाद सरकार को अपनी रिपोर्ट देगी।
मुख्यमंत्री ने अपने वक्तव्य में कहा कि हाल ही में विभिन्न जनमंचों और मीडिया में सरकारी जमीन पर अतिक्रमण खाली करने को लेकर व्यापक चर्चा हुई है। इसमें वन और राजस्व विभाग दोनों ही तरह की भूमि शामिल है। मुख्यमंत्री ने कहा कि अतिक्रमण हटाने की यह कार्रवाई हाईकोर्ट के आदेश पर ही हुई है।
वीरभद्र सिंह ने कहा कि सरकार ने यह महसूस किया है कि अतिक्रमण के मामलों में मानवीय दृष्टिकोण भी देखा जाना चाहिए। इसलिए सरकार ने निर्णय लिया कि इस मामले को कानूनी और मानवीय दोनों ही पहलुओं से देखा जाएगा। उन्होंने कहा कि कुछ लोगों ने गरीबी में मजबूर होकर कुछ अतिक्रमण किया है तो कुछ लोगों ने लालचवश सरकारी जमीन हथियाई है। अतिक्रमण के इन होनों तरह के मामलों में अंतर किया जाना जरूरी है। उन्होंने कहा कि इसके अतिरिक्त हमें वन और गैर वन भूमि पर भी अलग-अलग दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है।
उल्लेखनीय है कि हाल ही में अतिक्रमण हटाने के नाम पर राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में प्रशासन ने सेब के बागीचों पर जमकर कुल्हाड़ी चलाई, जिससे बागवानों में हाहाकार मच गया था। किसान-बागवान सहित विभिन्न संगठनों ने सरकार की इस कार्रवाई का कड़ा विरोध किया और सीपीआईएम ने तो कई जगह बागीचे काट रहे सरकारी अमले को खदेड़ा भी। इसी दौरान यह बात भी सामने आई कि सरकारी अमला केवल गरीब एवं छोटे किसानों पर ही कहर ढा रहा था, जबकि बड़े अवैध कब्जाधारकों, जिन्होंने सौ- डेढ़ सौ बीघा तक सरकारी भूमि पर कब्जे कर रखे हैं, को बख्स दिया जा रहा है। ऐसे में प्रदेश में सरकार के खिलाफ जनता में गुस्से का माहौल बनने लगा था। लेकिन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के विधानसभा में दिए गए इस वक्तव्य से किसानों को अवश्य राहत मिलेगी।