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सोलन। दिल्ली विधानसभा चुनाव में पिटने के बाद कांग्रेस और भाजपा यह मंथन करने में जुटी हैं कि आखिर क्योंकर जनता में उनकी छवि इस कदर गरीब विरोधी हो गई है। …ढूंढो तो जवाब हर जगह मिल जाएंगे। हिमाचल प्रदेश को ही लें, यहां वर्ष 2008 में शहरी बेघर गरीबों को छत उपलब्ध कराने के लिए केंद्रीय योजना के तहत पर्याप्त धनराशि उपलब्ध हुई थी, लेकिन सात वर्ष बीत जाने पर भी गरीबों के लिए आवास नहीं बन पाए। इस योजना पर पहले भाजपा सरकार ने और उसके बाद कांग्रेस सरकार ने कुंडली मारे रखी। करोड़ों रुपये का यह बजट अब 31 मार्च को लैप्स हो जाने वाला है।
केंद्र सरकार ने वर्ष 2008 में इंटीग्रेटिड हाउसिंग एंड स्लम डिवेल्पमेंट प्रोग्राम (आईएचएसडीपी) के तहत हिमाचल प्रदेश के आठ शहरों के गरीबों को छत मुहैया कराने के लिए योजना स्वीकृत की थी। कुछ शहरों में तो इसका जैसे तैसे चलता रहा, लेकिन धर्मशाला, बद्दी और सोलन में तो मकान बनाने का काम शुरू तक नहीं हो पाया है। शहरी आवास मंत्रालय और अधिकारियों ने गरीबों के इस मामले को कतई गंभीरता से नहीं लिया। इस योजना के तहत धर्मशाला में 326, सोलन में 320 और बद्दी में 480 शहरी गरीबों के लिए आवास बनने हैं। अधिकारीगण अब यह कह कर लीपापोती में जुट गए हैं कि आवास निर्माण के लिए ठेकेदार ही नही मिले, जिस कारण काम नहीं हो पाया। लेकिन अधिकारियों का यह तर्क किसी के भी गले नहीं उतर रहा है। क्योंकि हकीकत तो यह है कि सरकारी शह पर ही इस योजना में अड़गे अड़ाए जाते रहे। बद्दी में तो गरीबों के आवास के लिए पंचायत ने ही एनओसी देने से इनकर कर दिया।
विभागीय सूत्रों के अनुसार उक्त तीन शहरों में आवास निर्माण के लिए स्वीकृत हुई करीब 33 करोड़ रुपये की राशि न केवल अब 31 मार्च को लैप्स हो जाएगी, बल्कि यह राशि ब्याज सहित केंद्र को लौटानी पड़ेगी। यदि यह मामला गरीबों के हितों से जुड़ा नहीं होता तो क्या सरकारें इस ओर से इतनी लापरवाह होतीं ?