चंबा। स्वरोजगार और स्वावलम्बन के मायने केवल वही समझ सकते हैं जिन्हें मेहनत पर
‘गरिमा ग्रीन गोल्ड’ स्वयं सहायता समूह से जुड़े ये किसान आज प्रति माह 7-8 हजार रुपये की अतिरिक्त आमदनी कर रहे हैं। इससे उनके परिवार की आर्थिक स्थिति में भी खासा सुधार देखने में आता है। समूह के प्रधान कंठ राम ने बताया कि वर्ष 2005 में उनके समूह का गठन हुआ था। समूह ने शुरुआत परंपरागत सब्जी उत्पादन से ही की और फिर कुछ आगे बढ़ कर खुंब उत्पादन में हाथ आजमाने की सोची। सलूणी के करीब तीस किसानों ने इसके लिए सोलन के चंबाघाट में स्थित राष्ट्रीय मशरुम अनुसंधान केंद्र से प्रशिक्षण प्राप्त किया और गांव में लौट कर इसे आजीविका के रूप में अपनाया।
किसानों की लग्न को देखते हुए वर्ष 2011 में स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना के तहत इस समूह को ग्रामीण विकास विभाग के ज़रिये एक बड़ी जिम्मेदारी मिली। काम था, मशरुम की खेती के लिए कम्पोस्ट यूनिट को चलाना। वास्तव में जिला ग्रामीण विकास अभिकरण द्वारा कुछ वर्ष पूर्व राष्ट्रीय सम विकास योजना के तहत 85.73 लाख रुपये की लागत से उदयपुर गांव में एक कम्पोस्ट यूनिट की स्थापना की गई थी। अब इसे संचालित करने का पूरा जिम्मा ‘गरिमा ग्रीन गोल्ड’ ने अपने हाथ में ले लिया। समूह ने पूरी शिद्दत से कम्पोस्ट यूनिट पर काम किया और शुरु के अढ़ाई सालों में ही 1.7 लाख रुपये का शुद्व मुनाफा कमाया। कम्पोस्ट यूनिट ने इस अवधि में 16 हजार कम्पोस्ट बैग तैयार करके जिले के खुंब उत्पादकों को उपलब्ध कराए। पिछले करीब दो माह में ही इस यूनिट ने 6 हजार से ज्यादा मशरुम कम्पोस्ट बैग तैयार कर किसानों को उपलब्ध कराए हैं। इनकी कीमत प्रति बैग एक सौ पच्चीस रुपये रखी गई है, जबकि आईआरडीपी से संबंधित किसानों से मात्र 62.50 रुपये प्रति बैग ही वसूले जाते हैं।
जिला ग्रामीण विकास अभिकरण के परियोजना अधिकारी राम प्रसाद शर्मा बताते हैं कि नजदीक ही मशरुम कम्पोस्ट उपलब्ध होने के कारण अब काफी संख्या में किसान खुंब की खेती के लिए आगे आ रहे हैं। इस समय जिले में करीब डेढ़ सौ किसान मशरुम की खेती कर अच्छी आय अर्जित कर रहे हैं। स्वयं सहायता समूह का ’गरिमा ग्रीन गोल्ड’ नाम राम प्रसाद शर्मा ने ही सुझाया था। तब वे सलूणी विकास खण्ड में बतौर खंड विकास अधिकारी कार्यरत थे। ‘गरिमा‘ शब्द अंग्रेजी के ‘ग्रीन गोल्ड एराइजिंग मार्केटिंग’ का संक्षिप्त रुप है।