नई दिल्ली। उत्तराखंड और बिहार के बाद उत्तर प्रदेश, राजस्थान और गुजरात में भी लोकसभा और विधानसभा के लिए हुए उपचुनावों में
लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में भाजपा ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी। वहां जिन 11 सीटों पर उपचुनाव हुए थे उनमें भाजपा को मात्र तीन सीटों पर जीत हासिल हुई है, जबकि समाजवादी पार्टी के खाते में आठ सीटें गई हैं। यहां तक कि प्रधानमंत्री मोदी के निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी के तहत पड़ने वाली लोहनिया विधानसभा सीट पर भी सपा का कब्जा हो गया है।
लखनऊ में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत बाजपेयी ने इस करारी हार पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, “यदि उत्तर प्रदेश की जनता को समाजवादी पार्टी की खराब क़ानून व्यवस्था और अराजकता पसंद है तो जनता का आदेश सर-माथे पर। इन परिणामों की हम समीक्षा करेंगे।”
वहीं समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी का कहना था कि यह मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव की विकास और धर्म निरपेक्ष नीतियों की जीत है। उन्होंने कहा कि “जनता ने चार महीने में ही नरेंद्र मोदी और भाजपा को नकार दिया है।”
उधर, राजस्थान में भी भाजपा का प्रदर्शन काफी खराब रहा है। वहां कांग्रेस ने चार में से तीन सीटें भाजपा से छीन ली हैं। भाजपा को केवल एक सीट से संतोष करना पड़ा। पिछले साल दिसंबर के विधानसभा चुनाव में 200 में से 163 सीटों और मई में हुए लोकसभा चुनाव में सभी 25 सीटों पर अप्रत्याशित जीत हासिल करने वाली भाजपा के लिए यह नतीजे बहुत निराशाजनक हैं।
गुजरात राज्य की नौ सीटों में से छह सीटें भाजपा को और तीन सीटें कांग्रेस को मिली हैं। कांग्रेस को जिन सीटों पर जीत मिली है वो पहले भाजपा के पास थीं। पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस और भाजपा ने एक-एक सीट जीती है। बंगाल में भाजपा को मिली सफलता ज़रूर उसकी उपलब्धी मानी जाएगी। आंध्र में टीडीपी ने एक, असम में एआईयूडीएफ़, कांग्रेस और भाजपा ने एक -एक और त्रिपुरा में सीपीएम ने एक सीट जीती है।
विश्लेषकों का मानना है कि लोक लुभावन वादों के सहारे सत्ता में आई मोदी सरकार पर से सौ दिनों में ही जनता का मोह भंग होने लगा है। भाजपा ने संसदीय चुनाव के दौरान रोजगार, महंगाई, ब्लैक मनी, भ्रष्टाचार आदि पर जो भी वादे किए थे उनमें से किसी पर भी जमीनी स्तर पर कुछ नहीं हुआ है। यह चुनाव परिणाम मोदी सरकार को अपनी नीतियों में सुधार के लिए अच्छा सबक साबित हो सकते हैं।