देहरादून। लोकतांत्रिक व्यवस्था में चुनी हुई सरकार के लिए सियासी कठिनाइयां अकसर तब खड़ी होती हैं जब विपक्ष
खनन की हिस्सेदारी को लेकर ‘कुरुक्षेत्र’ बने रामनगर में बुधवार को जो वारदात हुई, उसका सूत्रधार कौन है, ये बेशक यक्ष प्रश्न हो, लेकिन जिस तरह से एक कैबिनेट मंत्री रैंक के महानुभाव को डंपर से कुचल डालने की खबरें हवा में तैरीं, उसने कहीं न कहीं सरकार को ही कठघरे में खड़ा कर दिया। ये महानुभाव कोई और नहीं बल्कि मुख्यमंत्री के खास लोगों में शुमार हरीश धामी हैं। धामी की ओर से पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई गई कि उन पर जानलेवा हमला हुआ है। हालांकि अब ये शिकायत वापस ली जा रही है। सवाल यह है कि धामी कोई मामूली व्यक्ति नहीं हैं। वे सरकार का हिस्सा हैं। पुलिस और सरकारी तंत्र उनकी हनक से वाकिफ है। फिर भी पुलिस की मौजूदगी में कोई उन्हें डंपर से कुचलने की कोशिश करता है और पुलिस में उनकी शिकायत दर्ज भी हो जाती है। उन पर हमले का हर तरफ हल्ला हो जाता है। सवाल यह है कि इस पूरे प्रकरण में कठघरे में कौन खड़ा है। साख पर बट्टा किसकी लगा? क्या रामनगर में सरकार और पुलिस की इतनी भी हनक नहीं रही कि अपने एक कैबिनेट रैंक के दर्जाधारी की हिफाजत कर सके। कहानी जो दिखाने की कोशिश हो रही है, दरअसल वो है नहीं।
बहरहाल, किस्सा जो भी हो, अपनी हरकतों से सरकार को असहज करने वाले धामी कोई अकेले महानुभाव नहीं। हरिद्वार में खनन माफिया के खिलाफ छेड़े गए अभियान में पूर्व विधायक रंजीत रावत की मौजूदगी को लेकर भी तमाम तरह के सवाल उठ चुके हैं। माना कि रंजीत रावत सीएम के औद्योगिक सलाहकार हैं, लेकिन छापा मारने और अभियान चलाने का काम पुलिस और एसआईटी का है। आखिर उनके ऐसा करने से साख किसकी खराब हुई? विपक्ष के हमलों का जवाब तो सरकार को ही देना पड़ा। इस मामले में खानपुर से कांग्रेसी विधायक कुंवर प्रणव चैंपियन तो उनसे भी दो हाथ आगे निकले। चैंपियन सिस्टम से खिन्न हैं। उनका कहना है- ‘’सीएम घोषणाएं करते हैं, लेकिन उन पर अमल नहीं होता। सीएम समीक्षा बैठकें लेते हैं, लेकिन पांच फीसदी का ही रिजल्ट आता है। अफसरशाही निकम्मी हो गई है। वो काम नहीं करना चाहती।‘’ माना कि इतना सब होने के बावजूद चैंपियन को सीएम से कोई शिकवा नहीं। लेकिन जो वो कह रहे हैं, वही तीर तो विपक्ष की ओर से दागे जा रहे हैं। बेशक वे यह मानने को तैयार नहीं कि इसके लिए मुखिया की ढील भी जिम्मेदार है। मगर सिस्टम को गुनहगार ठहराकर क्या वे अपनी ही पार्टी की सरकार को कठघरे में नहीं खड़ा कर रहे हैं? सरकार का ये तीसरा साल है। सीएम की जुबानी कहें तो ये कर्म का साल है। यानी इस साल के कर्म के आधार पर ही सरकार की भावी तकदीर लिखी जाएगी। मगर महानुभाव यूं ही सरकार को कठघरे में खड़ा करते रहे तो फिर कौन सा कर्म करामात दिखा पाएगा?